पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३४७ सत्यार्थअकाशः । .... भेजे । जब संवत् १९१४ के वर्ष में तोपों के मारे मन्दिर मूर्तियां अङ्गरेजों ने उडा | दी थीं तब मृत्ति कहां गई थी प्रत्युत बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की और लड़े शत्रुओं को मारा परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी जो श्रीकृष्ण के सदृश कोई होता तो इनके धुरै उड़ा देता और ये भागते फिरते भला यह तो कहो कि जिसका रक्षक मारखाय उसके शरणागत क्यों न पीटे जायें ? । | ( प्रश्न ) ज्वालामुखी तो प्रत्यक्ष देवी है सव को खाजाती है और प्रसाद देवे तो आधा खाजाती और अधा छोड देती है मुसलमान बादशाहों ने उस पर जल की नहर छुड़वाई और लोहे के तवे जडवाये थे तो भी ज्वाला न बुझी और न रुकी वैसे हिंगलाज भी वी रातको सवारी कर पहाड़ पर दिखाई देतीं, पहाड़ को गर्जना करता है, चन्द्रकप वोलता और योनियंन्न से निकलने से पुनर्जन्म नहीं होता, ठमर बावने से पूरा महापुरुप कहता जबतक हिंगलाज न हो आवे तबतक वा महापुरुष बजता है इत्यादि सव बातें क्या मानने योग्य नहीं ? ( उत्तर ) नहीं, क्योंकि वह ज्वालामुखी पहाड से आग निकलती है उसमें पुजारी लोगों की विचित्र लीला है जैसे ववार के घी के चमचे में ज्वाला जाती अलग करने से वा फेंक मारने से बुझ । जाती और थोड़े से घी को खाजात शेप छोड़ जाती हैं उसी के समान वहां भी ६ जैसी चूल्हे की ज्वाला में जो डाला जायसव भस्म हो जाता जंगल बा घर में लग जाने से सब को खा जाती है इससे वहा क्या विशेष है ? विना एक मन्दिर । कुण्ड अर इधर उधर नल रचना के हिंगलाज मे न कोई सवारी होती और जो कुछ होता है वह सब नारियों की लीला से दूसर। कुछ भी नहर एक जल और दुल्दुलकर कुण्ड बना रक्सा हैं जिसके नीचे से बुदबुदे उठते हैं उसको सफलयात्रा होना मृढ मानते हैं | यानि का वन्न उन लोगों ने वन हरने के लिये बनवा रक्खा है और ठुमर भी उसे । फार पापलीला के हैं इससे महापुरुप हो तो एक पशु पर ठुमरे का बोझ लाद हैं। ने या महापुरुप हो जायेगा? महापुरुष तो वड़ उत्तम वर्मयुक्त पुरुपार्थ से होता है। ( प्रश्न ) अमृतसर का तालाब अमृतरूप, एक मुरेठी का फल प्राधा मीठा और tr र भिना नमतं और गिरती नहीं, रेवालसर में बेतरते, अमरनाथ में आप से 'श्राप * ५ जाने, हिमालय से वृतर के जोड़े के सव को दर्शन देकर चले जात क्या यः भई नानने योग्य नहीं ? ( उत्तर ) नई। इस तालाब का नाममात्र अमृत। .६, ६५ । न ६।। । ३लछर में अच्छा होग। इससे उसका नाम अमृत