पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५२

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१३४२ | सत्यार्थप्रकाश. ॥ भूमि बहुत अच्छी है परन्तु वहां भी एक जमे हुए पत्थर पर पुजारी व उनके चेलें | ने मन्दिर वना रक्खा है वहा महन्त पुजारी पड़े आंख के अधे गांठ के पूरों से माल लेकर विपयानन्द करते हैं वैसे ही बदरीनारायण में ठग विद्यावाले बहुत से बैठे हैं। **रावलजी" वहा के मुख्य है एक स्त्री छोड़ अनेक स्त्री रख वैठे हैं पशुपति एक मन्दिर और पंचमुखी मूर्ति का नाम धर रक्खा है जब कोई न पृछे तभी ऐसी लीला वलवती होती है परन्तु जैसे तीर्थ के लोग वृतं धनहरे होते हैं वैसे पहाड़ी लोग नहीं होते वहां की भूमि बड़ी रमणीय और पवित्र है । ( प्रश्न ) विन्ध्याचल में विन्ध्येश्वरी काली अष्टभुजी प्रत्यक्ष सत्य है विन्ध्येश्वरी तीन समय में तीनरूप बदलती है और उसके वार्ड में मक्खी एक भी नहीं होती, प्रयाग तीर्थराज वहा शिर मुण्डायै सिद्धि गंगा यमुना के सगम में स्नान करने से इच्छासिद्धि होती है, वैसे ही अयोध्या कई बार उड़कर सर्व वस्ती सहित स्वर्ग में चली गई, मथुरा सब तीथों से अधिक, वृन्दावन लीलास्थान और गोवर्द्धन ब्रजयात्रा बड़े भाग्य से होती है, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में लाखो मनुष्यों का मेला होता है क्या ये सब बातें मिथ्या हैं (उत्तर) प्रत्यक्ष तो आंख से तीन मूर्तिया दीखती हैं कि पाषाण की मूर्तिया हैं और तीन काल में तीन प्रकार के रूप होने का कारण पूजारी लोगों के वस्त्र आदि भूपण पहिराने की चतुराई है और मक्खियां सहस्रों लाख होती हैं मैंने अपनी आखों से देखा है, प्रयाग में कोई नापित लोक बचानेहारा अथवा पोपजी को कुछ धन देके मुण्डन कराने का माहात्म्य बनाया वा बनवाया होगा प्रयाग में स्नान करके स्वर्ग को जाता तो लौटकर घर में आता कोई भी नहीं दीखता, किन्तु घर को सब आते हुए दीखते है अथवा जो कोई वहां डूब मरता और उसका जीव भी आकाश में वायु के साथ घूमकर जन्म लेता होगा तीर्थराज भी नाम टका लेनेवालों ने धरा है जड़ में राजा प्रजाभाव कभी नहीं हो सकता, यह बड़ी असम्भव बात है कि अयोध्या नगरी वस्ती कुत्ते गधे भंगी चमार जाजरू सहित तीन वार स्वर्ग में गई स्वर्ग में तो नहीं गई वही की वहाँ है परन्तु पोपजी के मुख गपोडों में अयोध्या स्वर्ग को उडगई यह गपडाशब्दरूप उड़ता फिरता है ऐसे ही नैमिषारण्य आदि की भी इन्हीं लोगों की लीला जानना, मथुरा तीन लोक से निराली' तो नहीं परन्तु उसमें तीन जन्तु वड़े लीलाधारी हैं कि जिनके मारे जले स्थल और अन्तरिक्ष में किसी को सुख मिलना कठिन है । एक चौबे जो कोई स्नान करने जाय अपना कर लेने को खड़े रहकर वकते रहते हैं लाओ यजमान ! भांग मच और लड्डू खावें पीवें यजमान की जय २ मनावें, दूसरे जल में