पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५३

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एकादशसमुल्लास: ।। । कछुवे काटे ही खाते हैं जिनके मारे स्नान करना भी घाट पर कठिन पड़ता है, तीसरे प्रकाश के ऊपर लाल मुख के बन्दर पगड़ी टोपी गहने और जूते तक भी न छोड़े काट खावे धके दे गिरा मारडाले और ये तीनों पाप और पोपजी के चेलों के पूजनीय हैं मन चना अदि अन्न कछुवे और बन्दरो को चना गुड़ आदि और चौयों की दक्षिणा और लड्डुओं से उन के सेवक सेवा किया करते हैं और वृन्दावन | जय था तब था अब तो वेश्यावनवत् लल्ला लल्ली और गुरू चेली आदि की लीला फैल रही है वैसे ही दीपमालिका का मेला गोवर्द्धन और ब्रजयात्रा में भी पापों की बन पडती हैं कुरुक्षेत्र में भी वही जीविका की लीला समझ लो इनमें जो कोई धार्मिक परोपकारी पुरुप है इस पोपलाला से पृथक् हो जाता है । ( प्रश्न ) यह मूर्तिपूजा और तीर्थ सनातन से चले आते है झूठे क्योंकर हो सकते है ? ( उत्तर ) तुम सनातन किसको कहते हो जो सदा से चला आता है, जो यह सदा से होता तो वेद और ब्राह्मणादि ऋषिमुनिकृत पुस्तकों में इन का नाम क्य नहीं है यह मूर्तिपूजा अढ़ाई तीन सहस्र वर्ष के इधर २ वाममार्गी और जैनियों से चली है प्रथम - यवर्त में नहीं थी और ये तीर्थ भी नहीं थे जब जैनियों ने गिरनार, पालिटाना, शिखर, शत्रुञ्जय और आबू आदि तीर्थ बनाये उनके अनुकूल इन लोगों ने भी बना लिये जो कोई इनके आरम्भ की परीक्षा करना चाहें वे पडों की पुरानी से पुरानी बही और तावे के पन्न आदि का लेख देखें तो निश्चय होजायगा कि ये सबै तीर्थ पांच सौ अथवा एक सहस्र से इधर ही बने हैं सहस्र वर्ष के उधर झा लेख किसी के पास नहीं निकलता इससे आधुनिक हैं । ( प्रश्न ) जो २ तीर्थ वा नाम का माहात्म्य अर्थात् जैसे अन्यक्षेत्र कृतं पापं काशीक्षेत्रे विनश्यति । इत्यादि बातें हैं वे सच्ची हैं वो नहीं ? ( उत्तर ) नहीं, क्योंकि जो पाप छूट जाते हों तो दरिद्रों को धन, राजपाट, अन्धो को आख मिल जाती, कोढ़ियों का कोढ़ आदि रोग छूट जाता ऐसा नहीं होना इसलिये पाप वा पुण्य किसी को नहीं छूटता ( प्रश्न ): गङ्गागड़ेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि ।। मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ १ ॥ हरिहंत पापानि हरिरित्यक्षरद्वयम् ॥ २ ॥