पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६१

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एकादशसमुल्लास. ।। । ३५१ सकता है देखो ! विना कारण अपनी माया से सब सृष्टि खड़ी कर दी है उस में कौनसी बात अधटन है ? जो करना चाहै सो सब कर सकता है । ( उत्तर) अरे भोले लागे । विवाह से जिस के गीत गाते हैं उसको सबसे बड़ा और दूसरों को छोटा चा निन्दा अथवा उसको सब का चाप तो नहीं बनाते ? कहो पोपजी तुम भाट और खुशामदी चारणों से भी बढकर गप्पी हो अथवा नहीं है कि जिसके पीछ लगो | उसी को सब से बड़ा बना और जिससे विरोध करो उसको सब से नीच ठह। राओ तुमको सत्य और धर्म से क्या प्रयोजन ? किन्तु तुम को अपने स्वार्थ ही से काम है। माया मनुष्य में हो सकती है जो कि छल कपटी हैं उन्हीं को मायावी कहते हैं परमेश्वर में छल कपटादि दोष न होने से उसको मायावी नहीं कह सकते। | जे अदि सृष्टि में कश्यप और कश्यप की स्त्रियों से पशु, पक्षी, सप्प, वृक्षादि हुए। | होते तो आजकल भी वैसे सन्तान क्यों नही होते ? सृष्टिक्रम जो पहिले लिख अाये वही ठीक है और अनुमान है कि पोपजी यहीं से धोखा खाकर चके होंगेःतस्मात् काश्यप्य इमाः प्रजाः ॥ शत० ७।५ । १ । ५ ॥ शतपथ में यह लिखा है कि यह सब सृष्टि कश्यप की बनाई हुई है ।। | कश्यपः कस्मात् पश्यको भवतीति ।। निरु० अ० २ । खं० २॥ । सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम कश्यप इसलिये है कि पश्यक अर्थात् ‘‘पश्यतीति पश्य. पश्य एव पश्यक जो निभ्रम होकर चराचर जगत् सव जीव और इनके कर्म सकल विद्या को यथावत् देखता है और “अद्यन्तविपर्ययश्च” इस | महाभाष्य के वचन से आदि का अक्षर अन्त और अन्त का वर्ण आदि में आने स ‘‘पश्यक से 'कश्यप” बन गया है इसका अर्थ न जान के भाग के लोट | चढ़ा अपना जन्म सृष्टिविरुद्ध कथन करने में नष्ट किया । जैसे मार्कण्डेयपुराण के दुर्गापाठ में देवों के शरीरों से तेज निकल के एक देवी | बनी उसने महिपासुर को मारा रक्तबीज के शरीर से एक विन्दु भूमि में पड़ने से | उसके सदृश रक्तवीज के उत्पन्न होने से सब जगत् में रक्तवीज भरजानी रुधिर की नदी का बह चलना आदि गपोडे वहुतमे लिख रखे है जव रक्तवीज्ञ से सब जगत् भरगया था तो देवी और देवी का सिंह और उसकी सेना कहा रही थी ? | जो कहा कि देवी से दूर २ रक्तबीज थे तो सब जगन् रक्तबीज से नहीं भरा था ? |