पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६४

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३५४ सत्यार्थप्रकाश' । । होनी मांगी नृसिह ने वर दिया कि तेरे इक्कीस पुरुषे सद्गति को गये । अव देखो ! यह भी दूसरे गपोड़े का भाई गपोडा है किसी भागवत सुनने वा वांचनेवाले को पकड़ पहाड़ के ऊपर से गिरावे तो कोई न वचावे चकनाचूर होकर मर ही जावे । प्रद्लाद को उसका पिता पढ़ने के लिये भेजता था क्या बुरा काम किया था ? और वह प्रह्लाद ऐसा मूर्ख पढना छोड़ वैरागीं होना चाहता था जो जलते हुए खंभे से कीड़ी चढ़ने लगी और प्रह्लाद स्पर्श करने से ने जला इस बात को जो सभी माने इसको भी खंभे के साथ लगा देना चाहिये जो यह ने जले तो जानो वह भी न जला होगा और नृसिंह भी क्यों ने जला ? प्रथम तीसरे जन्म में वैकुण्ठ में । आने का वर सनकादिक का था क्या उसको तुम्हारा नारायण भूल गया ? भागवत | की रीति से ब्रह्मा, प्रजापति, कश्यप, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप चौथी पीढी में | होता है इक्कीस पीढ़ी प्रहलाद की हुई भी नहीं पुन इकोस पुरुष मगति को गये | कह देना कितना प्रमाद है । और फिर वे ही हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, रावण, कुम्भकरण, पुनः शिशुपाल दन्तवक्र उत्पन्न हुए तो नृसिंह का वर कहा उड़ गया ? ऐसी प्रमाद की बाते प्रमादी करते सुनते और मानते हैं विद्वान् नहीं । | पूतना और अक्रूरजी के विपय में देखो.-- रथेन वायुवेगेन । भा० स्कं० १० । अ० ३९ । श्लोक ३८ ॥ जगाम गोकुल प्रति॥ भा० स्कं० १०पू० अ० ३८}श्लो० २४॥ कि अक्रूरजी कंस के भेजने से वायु के वेग के समान दौड़नेवाले घोड़ों के रथ पर बैठकर सूर्योदय से चले और चार मील गोकुल में सूर्यास्त समय पहुचे अथवा घोड़े भागवत वनानेवाले की परिक्रमा करते रहे होंगे ? चा मार्ग भृल भागवत वनानेवाले के घर में घोड़े हाकने वाले और अकूरजी कर सोये होंगे ? ।। पूतनाका शरीर छः कोश चौडा और वहुतसा लंवा लिखा है मथुरा और गोकुल के वीच में उसको मारकर श्रीकृष्णजी ने डाल दिया जो ऐसा होता तो मथुरा और गोकुल दोनों देवकर इस पापजी का घर भी दब गया होता ।।। | और अजमेल की कथा ऊटपटारा लिखी है.-उसने नारद के कहने से अपने लडके का नाम 'नारायण' रखा था मरते समय अपने पुत्र को पुकारा बीच में नारायण कूद पड़े, क्या नारायण उसके अन्तकरण के भाव को नहीं जानते थे कि