पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६८

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= »»942yY | सत्यार्थप्रकाश: ।। अधिकार है जो हम में मंत्रशक्ति न होता तो तुम्हारे से नास्तिक हमको संसार में | रहने ही न देते । ( सत्यवादी ) जो चोर, डाकू, कुकर्मी लोग हैं वे भी तुम्हारे देवताओं के आधीन होंग ? देवता ही उन से दुष्ट काम कराते होगे ? जो वैसा है तो तुम्हारे देवता और राक्षसों में कुछ भेद न रहेगा जो तुम्हारे आधीन मन्न है उनसे तुम चाहो सो करा सकते हो तो इन मंत्रों से देवताओं को वश कर राजाओं के कोष उठवाकर अपने घर में भरकर बैठ के आनन्द क्यों नहीं भोगते ? घर २ में शनैश्चरादि के तैल आदि का छायादान लेने को मारे २ क्यों फिरत हो ? और जिसको तुम कुवेर मानते हो उसको वश में करके चाहो जितना वन लिया करो विचारे गरीबों को क्यों लूटत हो ? तुमको दान देने से ग्रह प्रसन्न और न देने से अप्रसन्न होते हों तो हमको सूय्यादि ग्रहों की प्रसन्नता अप्रसन्नता प्रत्यक्ष दिखलाओ जिसको ८ वा सूर्य चन्द्र और दूसरे को तीसरा हो उन दोनों को ज्येष्ठ महीने में विना जूते पहिने तपी हुई भूमि पर चलाओ जिस पर प्रसन्न है उनके पग शरीर न जलने और जिस पर क्रोधित हैं उनके जल जाने चाहिये तथा पौष मास में दोनों को नंगे कर पौर्णमासी की रात्रि भर मैदान में रक्खें एक को शीत लगे दूसरे का नहीं तो जानो कि ग्रह क्रूर और सौम्यदृष्टि बाले होते हैं। और क्या तुम्हारे ग्रह सम्वन्धी हैं ? और तुम्हारी डाक वा तार उनके पास आता जाता है ? अथवा तुम उनके वा वे तुम्हारे पास आते जाते हैं ? जो तुम में मन्त्र शक्ति हो तो तुम स्वयं राजा वा धनाढ्य क्यों नहीं बन जाओ ? वा शत्रुओं को अपने वश में क्यों नहीं कर लेते हो ? नास्तिक वह होता है जो वेद ईश्वर की आज्ञा वेदविरुद्ध पोपलीला चलावे जब तुमको ग्रहदान न देवे जिस पर ग्रह है वह ग्रहदान को भोगे तो क्या चिन्ता है जो तुम कहे कि नहीं हम ही को देने से वे प्रसन्न होते हैं अन्य को देने से नहीं तो क्या तुम ने ग्रहों का ठेका ले लिया है ? जो ठेका लिया हो तो सूर्यादि को अपने घर में बुला के जल मरो। सच तो यह है कि सूर्यादि लोक जड़ हैं वे न किसी को दु ख और न सुख देने की चेष्टा कर सकते है किन्तु जितने तुम ग्रहदानोपजीवी हो वे सब तुम ग्रहों की मूर्तियां हो क्योंकि ग्रह शब्द का अर्थ भी तुम में ही घटित होता है ये गृहन्ति ते ग्रहा' जो ग्रहण करते हैं उनका नाम ग्रह हैं, जबतक तुम्हारे चरण राजा रईस सेठ साहूकार और दरिद्रों के पास नहीं पहुंचते तवतक किसी को नवग्रह का स्मरण भी नहीं होता जब तुम साक्षात् सूर्य शनैश्चरादि मृतिमान् उन पर जा चढ़ते हो तव विना ग्रहण किये उनको कभी नहीं छोड़ते !