पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६९

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एकादशसमुल्लासः ।। और जो कोई तुम्हारे पास में न आवे उसकी निन्दा नास्तिकादि शब्दों से करते फिरते हो ! ( पोपजी) देखो ! ज्योतिष का प्रत्यक्ष फल आकाश में रहनेवाले सूर्य चन्द्र और राहु केतु के संयोगरूप ग्रहण को पहले ही कह देते हैं जैसा यह प्रत्यक्ष होता है वैसा ग्रहों का भी फल प्रत्यक्ष हो जाता हैं देखो ! धनाढ्य, दरिद्र, राजा, रंक, सुख, दुःखी ग्रहों ही से होते हैं । ( सत्यवादी ) जो यह ग्रहणरूप प्रत्यक्ष फल है सो गणितविद्या का है फलित का नहीं, जो गणितविद्या है वह सची और फलितविद्या स्वाभाविक सम्वन्धजन्य को छोड़ के झूठी है, जैसे अनुलोम, प्रतिलोम घूमनेवाले पृथिवी और चंद्र के गणित से स्पष्ट विदित होता है कि अमुक समय, अमुक देश, अमुक अवयव में सूर्य व चन्द्र को ग्रहण होगा जैसे.-- | छादयत्यर्कमिन्दुर्विधं भूमिभाः ॥ यह ग्रहलाधव के चौथे अध्याय का चौथा इलोक है और इसी प्रकार सिद्धान्तशिरोमणि, सूर्यसिद्धान्तादि में भी है अर्थात जब सूर्य भूमि के मध्य में चद्रमा आता है तब सूर्य ग्रहण और जब सूर्य और चन्द्र के बीच में भूमि आती है तय चन्द्र ग्रहण होता है अर्थात् चन्द्रमा की छाया भूमि पर और भूमि की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है। सूर्य प्रकाशरूप होने से उसके सन्मुख छाया किसी की नहीं पड़ती किन्तु जैसे प्रकाशमान सूर्य व दीप से देहादि की छाया उल्टी जाती है वैसे ही ग्रहण में समझो। जो धनाढ्य, दरिद्र, प्रजा, राजा, रक होते हैं वे अपने कर्मों से होते हैं ग्रह से नहीं बहुत से ज्योतिषी लोग अपने लड़के लड़की का विवाह ग्रहों की गणितविद्या के अनुसार करते हैं पुन: उनमें विरोध वा विधवा अथवा मुतखीक पुरुष होजाता है जो फल सञ्चा होता तो ऐसा क्यों होता है इसलिये कर्म की गति सच्ची और ग्रहों की गति सुख दु:ख भोग में कारण नहीं । भला ग्रह आकाश में और पृथिवी भी प्रकाश में बहुत दूर पर हैं इनका सम्बन्ध कर्ता और कर्मों के साथ साक्षात् नहीं, कर्म और कर्म के फल का कर्ता भोक्ता जीव और कर्मों के फल भोगनेहार परमात्मा हैं जो तुम ग्रहों का फल मानो तो इसका उत्तर देओ कि.जिस क्षण में एक मनुष्य का जन्म होता है जिसको तुम ध्रुव त्रुटि मानकर जन्मपन्न बनाते हो उसी समय में भूगोल पर दूसरे का जन्म होता है वा नहीं है जो कहो नहीं तो झूठ और जो कहा होता है। तो एक चक्रवत्त के सदृश भूगोल में दूसरा चक्रवर्ती राजा क्यों नहीं होता ? हा इतना तुम कह सकते हो कि यह लीला हमारे उदर भरने की है तो कोई भान भी।