पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७१

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एकादशयमुखः ॥ आया जीभ बन्द होगई और खाट से भूमि पर ले लिया अर्थात् प्राण छोड़ने की समय अपहुंचा। उस समय जाट के इष्ट मित्र और सम्वन्धी भी उपस्थित हुए थे तब पोपजी ने पुकारा कि यजमान ! अब तू इसके हाथ से गोदान कर | जाट १० ) रुपया निकाल पिता के हाथ में रखकर बोला पढो सङ्कल्प | पोपजी बोला वाह २ क्या बाप बारम्बार मरता है? इस समय तो साक्षात् गाय को ला जो दूध देती हो, बुड्ढी न हो, सब प्रकार उत्तम हो, ऐसी गौ का दान कराना चाहिये। (जादजी) हमारे पास तो एक ही गाय है उसके विना हमारे लड़केवालों को निर्वाह न हो सकेगा इसलिये उसको न दूंगा लो २०) रुपये का संकल्प पढ़ देओ और इन रुपयों से दूसरी दुधार गाय ले लेना। ( पोपजी) वाहू जी वाह ! तुम अपने बाप से भी गाय को अधिक समझते हो ? क्या अपने बाप को वैतरणी नदी में डुबाकर हु ख देना चाहते हो। तुम अच्छे सुपुत्र हुए ? तब ते रोपजी की ओर सव कुटुम्बी होगये क्योंकि उन सब को पहले ही पोपजी ने बहका रखा था और उस समय में इशारा कर दिया सबने मिलकर हठ से उसी गाय का दान उसी पोपजी को दिला दिया । उस समय जाट कुछ भी न वोला, उसका पिता मरगया और पोपजी वच्छासहित गाय और दोहने की बटलोई को ले अपने घर में गौ बाव बटलाई धर पुनः जाट के घर आया और मृतक के साथ श्मशानभूमि में जाकर दाहकर्म कराया वहां भी कुछ २ पोपलीला चलाई । पश्चात् दशगात्र सपिंडी कराने आदि में भी उसको मुडा, महाव्राह्मणों ने भी लूटा और भुकड़ो ने भी बहुतसा माल पेट में भरा अर्थात् जब सव क्रिया होचुकीं तव जाट ने जिस किसी के घर से दूध मांग मग निर्वाह किया चौदहवे दिन प्रात:काल पोपजी के घर पहुंचा देखा तो गाय दुइ वटलोई भर पोपजी के उठने की तैयारी थी इतने ही में जादजी पहुचे उसको देन पोपजी बोला आइये ! यजमान बैठिये ! ( जाटजी) तुम भी पुरोहितजी इधर श्रा। (पोपजी ) अच्छी दूध वर आऊं ( जाटजी) नहीं २ दूध की बटलाई इधर ला । पोपजी विचारे जा बैठे और बटलोई सामने वर दी । ( जाटजी) नुम बड़े डटे हो। (पोपजी) क्या झूठ किया ? । जाटजी) कहो तुमने ना किसलिये ली थी? ( पापज) । तुम्हारे पिता के वैतरणी नदी तरने के लिये ( जाट ) पन्छा तो तुमने वा संतरणी के किनारे पर गाय य न पहुई? हम तो तुन्हा भरप पर है और तुम । अपने घर वावगैठे न जाने मेरे नाप ने बैन । नन : २३, ५ र ? ? पपई } नहीं २ वडा इन धान के पूर्ण भार ५ " 17 ३ ६ ३ ३-५ दिव।