पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७२

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| सत्यार्थप्रकाशः ।। होगा । ( जाटजी ) वैतरणी नदी यहां से कितनी दूर और किधर की ओर है ? ( पोपजी ) अनुमान से कोई तीस क्रोड़ कोश दूर है क्योकि उञ्चास कोटि योजन पृथिवी है । और दक्षिण नैर्ऋत्य दिशा में वैतरणी नदी है (जादजी ) इतनी दूर से तुम्हारी चिट्ठी वा तार का समाचार गया हो उस का उत्तर आया हो कि वहां पुण्य की गाय वन गई अमुक के पिता को पार उतार दिया दिखलाओ।'(पोपजी) हमारे पास गरुडपुराण के लेख के विना डाक वा तारवर्दी दूसरी कोई नहीं । (जाटनी ) इस गरुडपुराण को हम सच्चा कैसे मानें ? ( पोपजी) जैसे सब मानते हैं। (जाटजी ) यह पुस्तक तुम्हारे पुरुषाओ ने तुम्हारे जीविका के लिये बनाया है क्योंकि पिता को विना अपने पुत्रों के कोई प्रिय नहीं जब मेरा पिता मेरे पास चिट्ठी पत्री बा तार भेजेगा तभी मैं वैतरणी के किनारे गाय पहुचा दूंगा और उनको पार उतार पुन गाय को घर में ले दूध को मैं और मेरे लड़केवाले पिया करेंगे, लाओ। दूध की भरी हुई बटलाई, गाय, बछड़ा लेकर जाटजी अपने घर को चला । ( पोपजी ) तुम दान देकर लेते हो तुम्हारा सत्यानाश होजायगा ।। जाटजी ) चुप रहो नहीं तो तेरह दिन लो दूध के विना जितना दु:ख हमने पाया है सव कसर निकाल दुगा | | सबै पोपजी चुप रहे और जाटजी गाय बछड़ा ले अपने घर पहुचे । जब ऐसे ही जादजी के से पुरुष हों तो पोपलीला संसार में न चले जो ये लोग कहते हैं कि दशगात्र के पिंडों से दश अङ्ग सपिंडी करने से शरीर के साथ जीव का मेल होके अगुष्ठमात्र शरीर वन के पश्चात् यमलोक को जाता है तो मरती समय यमदूतों का आना व्यर्थ होता है त्रयोदशाह के पश्चात् आना चाहिये जो शरीर वन जाता हो तो अपनी स्त्री सन्तान और इष्ट मित्रों के मोह से क्यों नहीं लौट आता है ? (प्रश्न) स्वर्ग में कुछ भी नहीं मिलता जो दान किया जाता है वहीं वहां मिलता है इसलिये सव दान करने चाहिये । ( उत्तर ) उस तुम्हारे स्वर्ग से यही लोक अच्छा जिसमें धर्मशाला हैं, लोग दान देते हैं, इष्ट मित्र और जाति में खूब निमन्त्रण होते हैं, अच्छे २ वस्त्र मिलते हैं, तुम्हारे कहने प्रमाण स्वर्ग में कुछ भी नहीं मिलता ऐसे निर्दय, कृपण, कंगले स्वर्ग में पोपजी जाके खराव होवें वहां भले मनुष्य का क्या काम (प्रश्न) जब तुम्हारे कहने से यमलाक और यम नहीं है तो मरकर जीव कहा जाता है और इनका न्याय कौन करता है ? (उत्तर) तुम्हारे गरुडपुराण का कहा हुआ तो अन्न| माण है परन्तु जो वेदोक्त है कि: