पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७४

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अत्याः ।। वाले, अविद्यादि क्लेश, हठ, दुराग्रहाऽभिमानरहित, अमृत के समान अपमान और विष के समान मान को समझनेवाले सन्तोपो, जो कोई प्रीति से जितना देवे उतने ही से प्रसन्न, एक बार आपत्काल में मार्ग भी न देन वा वर्जने पर भी दु.ख वा बुरी चष्टा न करना, वहां से झट लौट जाना, उसकी निन्दा न करना, सुखी पुरुषों के साथ मित्रता दु.खियों पर करुणा, पुण्यात्माओं से आनन्द र पापियो से उपेक्षा अर्थात् रागद्वेषरहित रहना, सत्यमानी, सत्यवादी, सत्यकारी, निश्कपट, ईष्र्या द्वैपरहित गंभीराशय, सत्पुरुप, धर्म से युक्त और सर्वथा दुष्टाचार से रहित, अपने तन मन धन को परोपकार करने में लगानेवाले, पराये सुख के लिये अपने प्राणों को भी समर्पितकत्ता इत्यादि शुभलक्षणयुक्त सुपात्र होते हैं, परन्तु दुर्भिक्षादि आपत्काल में अन्न, जल, वस्त्र और औपधि पथ्य स्थान के अधिकारी सर्व प्राणीमात्र हो सकते हैं । | ( प्रश्न) दाता कितने प्रकार के होते हैं ? ( उत्तर ) तीन प्रकार के-उत्तम, मध्यम और निकृष्ट, उत्तम दाता उसको कहते हैं जो देश, झाल, पान्न को जानकर सत्यविद्या वर्म की उन्नतिरूप परोपकारार्थ देवे । मध्यम वह हैं जो कीर्ति वा स्वार्थ के लिये दान करे। नीच वह है कि अपना वा पराया कुछ उपकार न कर सके किन्तु वेश्यागमनादि वा भाड भाट आदि को देवे, देते समय तिरस्कार अपमानादि भी कुचेष्टा करे, पात्र कुपान्न का कुछ भी भेद न जाने किन्तु **सब अन्न वारह पसेरी बेचनेवालों के | समान विवाद लड़ाई, दूसरे धर्मात्मा को दु.ख देकर सुखी होने के लिये दिया करे वह अधम दाता है अर्थात् जो परीक्षापूर्वक विद्वान् धर्मात्माओं का सत्कार करे वह उत्तम और जो कुछ परीक्षा करे वा न करे परन्तु जिसमें अपनी प्रशंसा हो उसको मध्यम और जो अन्धाधुन्ध परीक्षारहित निष्फल दान किया करे वह नीच दाता कहात' है। | ( प्रश्न ) दान के फल चहां होते हैं वा परलोक में ? ( उत्तर ) सर्वन्न होते हैं। ( प्रश्न) स्वयं होते हैं वा कोई फल देनेवाला है ? (उत्तर) फजदेने वाला ईश्वर है जैसे कोई चोर डाकू स्वयं बंदीघर में जाना नहीं चाहता राजा उसको अवश्य भेजता हैं धर्मा| त्माओं के सुख की रक्षा करता भुगता डाकू आदि से बचाकर उनको सुख में रखता है वैसे ही परमात्मा सब को पाप पुण्य के दु ख और सुखरूप फलों को यथावत् भुगता है ( प्रश्न ) जो ये गरुडपुराणादि ग्रन्थ हैं वेदार्थ वा वेद की पुष्टि करनेवाले है वो | नहीं ? (उत्तर )नहीं, किन्तु वेद के विरोधी अर उलटे चलते हैं तथा तंत्र भी वैसे ही है जैसे कोई मनुश्य एक का मित्र सब संसार का शत्रु हो, बैंच इपुराण और तंत्र का माननेवाला पुरुष होता है कि एक दूसरे से विरोध करनेवाले ये ग्रन्थ हैं इनका -- - ॥ - ---