पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७५

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L**== एकदमुक्षः । ३६५ । मानना किसी विद्वान् का काम नहीं किन्तु इनको मानना अविद्वत्ता है। देखो ! शिवपुराण में त्रयोदशी, सोमवार, आदित्यपुराण में रवि, चन्द्रखण्ड में सोमग्रह वाले मंगल, बुद्ध, वृहस्पति, शुक्र, शनैश्चर, राहु, केतु के वैष्णव एकादशी, वामन की द्वादशी, नृसिह वा अनन्त की चतुर्दशी, चन्द्रमा की पौर्णमासी, दिक्पाल की दुशमी, दुर्गा की नौमी, वसुओं की अष्टमी, मुनियों की सप्तमी, स्वाभिकार्तिक की षष्ठी, नाग की पंचमी, गणेश की चतुर्थी, गौरी की तृतीया, अश्वनीकुमार की द्वितीया, अद्यादेवी की प्रतिपदा और पितरों की अमावास्या पुराणरीति से ये दिन उपवास करने के है और सर्वत्र यही लिखा है। कि जो मनुष्य इन वार और तिथियों में अन्नपान ग्रहण करेगा वह नरकगामी होगा। अब पोप और पोपजी के चेलों को चाहिये कि किसी वार अथवा किसी तिथि में भोजन न करे क्योंकि जो भोजन वा पान किया तो नरकगामी होगे। अब ‘‘निर्णयसिन्धु “धर्मसिन्धु” “ब्रतार्क' आदि ग्रन्थ जो कि प्रमादी लोगों के बनाये हैं उन्ही में एक २ व्रत की ऐसी दुर्दशा की है कि जैसे एकादशी को शैव, दशमविद्धा कोई द्वादशी में एकादशी व्रत करते है अर्थात् क्या बड़ी विचित्र पोपलीला है कि भूखे मरने में भी वाद विवाद ही करते है जो एकादशी का व्रत चलाया है उसमें अपना स्वार्थपन ही है और दया कुछ भी नहीं वे कहते हैं:---- एकादश्यामन्ने पापानि वसन्ति । . जितने पाप हैं वे सब एकादशी के दिन अन्न में बसते हैं इस पोपजी से पूछना चाहिये कि किसके पाप उसमें बसते हैं ? तेरे वा तेरे पिता आदि के ? जो सब के सब पाप एकादशी में जा बसें तो एकादशी के दिन किसी को दु ख न रहना चाहिये ऐसा तो नहीं होता किन्तु उलटा क्षुधा आदि से दु.ख होता है दु.ख पाप का फल है। इस से भूखे मरना पाप है इसका बड़ा माहात्म्य बनाया है जिसकी कथा वाच के बहुत ठगे जाते हैं। उसमें एक गाथा है किः-- ब्रह्मलोक में एक वेश्या थी उसने कुछ अपराध किया उसको शाप हुआ, वह पर्थिवी पर गिर उसने स्तुति की कि मै पुनः स्वर्ग में क्योंकर सकेंगी ? उसने कहा जब कभी एकादशी के व्रत का फल तुझे कोई देगा। तभी तू स्वर्ग में आजायगी। वह विमान सहित किसी नगर में गिर पड़ी वहा के राजा ने उससे पूछा कि तू कौन है ? तब उसने सर्व वृत्तान्त कह सुनाया और कहा कि जो कोई मुझ को एकादशी का फल अर्पण करे तो फिर भी स्वर्ग को जा सकती हू राजा ने नगर में खोज क- ।