पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७६

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सत्यार्थप्रकाशः । -

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-= = = राया कोई भी एकादशी का व्रत करनेवाला ने मिला किन्तु एक दिन किसी शूद्र स्त्री पुरुष । में लड़ाई हुई थी क्रोध से स्त्री दिन रात भूखी रही थी दैवयोग से उस दिन एकादशी ही थी। उसने कहा कि मैंने एकादशी जानकर तो नहीं की अकस्मात् उस दिन भूखी रह गई थी ऐसे राजा के भृत्यों से कहा तब तो वे उसको राजा के सामने ले आये, उससे राजा ने कहा कि तू इस विमान को छु, उसने छुआ तो उसी समय विमान ऊपर को उड़ गया । यह तो विना जाने एकाद्शी के व्रत का फल है, जो जान के करे तो उस के फल का क्या पारावार है !!! वाह रे आंख के अंधे लोगो ! जो यह बात सच्ची हो तो हम एक पान की वीड़ी जो कि स्वर्ग में नहीं होतीं भेजना चाहते हैं सव एकादशी वाले अपना २ फल देदो जो एक पान का वीड़ा ऊपर को चला जायगा तो पुन. लाख क्रोड़ों पान वहा भेजेंगे और हम भी एकादशी किया करेंगे और जो ऐसा न होगा तो तुम लोगों को इस भूखे मरनेरूप अपत्काल से बचावेगे। इन चौबीस एकादशियों के नाम पृथक् २ रक्खे हैं किसी का धनदा किसी का कामदा किसी का पुत्रदा और किसी का निर्जला बहुत से दरिद्र, बहुत से कामी और बहुतसे निवेशी लोग एकादशी करके बूढे होगये और मर भी गये परन्तु धन, कामना और पुत्र प्राप्त न हुआ और ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में कि जिस समये एक बड़ी भर जल न पावे तो मनुव्य व्याकुल हो जाता है व्रत करनेवालों को महादु ख प्राप्त होता हैं।वशेष कर बंगाले में सब विधवा स्त्रियों की एकादशी के दिन बडे। दुर्दशा होती है इस निर्दयी कसाई को लिखते समय कुछ भी मन में या न आई नहीं तो निर्जला का नाम सजला और पौष महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम निजेला रम्ब देता तो भी कुछ अच्छा होता परन्तु इस पोप को दुया से क्या काम ? कोई जीवो वा मरो पोपजी का पेट पूरा भरो गर्भवती वा सद्योविवाहिता स्त्री, लडके वा युवा पुरूप को तो कभी उपवास न करना चाहिये परन्तु किसी को करना भी हो तो जिस दिन अजीर्ण हो क्षुबा न लगे उस दिन शर्कररावत् (शर्वत ) वा दूध पीकर रहना चाहिये जो भूख में नहीं खाते और विना भूख के भोजन करते हैं वे दोनों रागसागर में गोत वा दु ख पाते हैं इन प्रमादियों के कहने लिखने का प्रमाण कोई भी न करे ॥ | = = - = - -=

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अब गुरु शिष्य मन्त्रोपदेश और मतमतान्तर के चरित्र का वर्तमाम कहते हैं | मूर्तिपूजक संप्रदाय लग प्रश्न करते हैं कि वेद अनन्त हैं ऋग्वेद की २१, यजुर्वेद | का १०१, ननद की १००० र अथर्ववेद की ९ शाखा है, इनमें से थेीसी |