पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३७९

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एकादशसमुल्लासः ।। मंगवाते है, जहां मेला ठेला होता है वहां छोकरे पर मुकुट धर कन्हैया बना मार्ग में बैठाकर भीख मगवाते है इत्यादि बातों को आप लोग विचार लीजिये कि कितने बड़े शोक की बात है भला कहो तो सीतारामादि ऐसे दरिद्र और भिक्षुक थे ? यह उनका उपहास और निन्दा नहीं तो क्या है ? इससे बडी अपने माननीय पुरुषो को निन्दा होती है भला जिस समय ये विद्यमान थे उस समय सीता, रुक्मिणी, लक्ष्मी और पार्वती को सड़क पर वा किसी मकान में खड़ी कर पूजारी कहते कि आओ इनका देर्शन करो और कुछ भेट पूजा धरो तो सीतारामादि इन मूख के कहने से ऐसा काम कभी न करते और न करने देते जो कोई ऐसा उपहास उनका करता उसको विना दंड दिये कभी छोड़ते ? हा, जब उन्हों से दडे न पाया तो इनके कर्मों ने पूजारियों को बहुतसी मूर्तिविरोधियों से प्रसादी दिलादी और अब भी मिलती है और जबतक इस कुकर्म को न छाडेगे तबतक मिलेगी इस में क्या सदेह है कि जो आर्यावर्त की प्रतिदिन महाहानि पाषाणादि मूर्तिपूजको का पराजय इन्हीं कम से होता है क्योंकि पाप का फल दु.ख है इन्हीं पाषाणादि मूर्तियों के विश्वास से बहुतसी हानि होगई जो न छोडेंगे तो प्रतिदिन अधिक २ होती जायगी, इनमे से वाममार्गी बड़ेभारी अपराधी हैं जब वे चला करते हैं तब साधारण को - | दं दुर्गायै नमः। भं भैरवाय नमः। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। | इत्यादि मन्त्रों का उपदेश कर देते हैं और बंगाले में विशेष करके एकाक्षरी मन्त्रोपदेश करते हैं जैसा हीं, श्री, क्लीं ॥ शावरतं० बं० प्रकी० प्र० ४४ ॥ इत्यादि और धनाढयों का पूर्णाभिषेक करते है ऐसे ही दश महाविद्याओ के मंत्रः ह्रां ह्रीं हुं वगलामुख्यै फट् स्वाहा ॥ शा० प्रकी० प्र० ४१॥ ! कहाँ ३ । हूं फट् स्वाहा ।। कामरत्न तंत्र बीज मंत्र ४ ॥ और मारण, मोहन, उच्चाटन, विद्वेषण, वशीकरण अदि प्रयोग करते है सो मन्त्र से तो कुछ भी नहीं होता किन्तु क्रिया से सब कुछ करते हैं जब किसी को मारने का | प्रयोग करते हैं तब इधर करानेवाले से धन ले के आटे वा मिट्टी का पूतला जिस ।

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