पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८०

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सत्यार्थप्रकाश. ।।। को मारना चाहते हैं उसका बना लेते हैं उसकी छाती, नाभि, कण्ठ में छुरे प्रवेश । कर देते हैं आंख, हाथ, पग में कीलें ठोंकते है उसके ऊपर भैरव वा दुर्गा की मूर्ति बना हाथ में त्रिशूल दे उसके हृद्य पर लगाते हैं एक वेदी बनाकर मास आदि का होम करने लगते हैं और उधर दूत आदि भेज के उसको विप आदि में मारने का उपाय करते हैं जो अपने पुरश्चरण के बीच में उसको मारडाला तो अपने को भैरव देवी का सिद्ध बतलाते हैं ‘‘भैरवो भूतनाथश्च इत्यादि का पाठ करते हैं ।। मारय २, उच्चाटय २, विद्वेषय २, छिन्धि २, भिन्धि २, वशीकुरु २, खादय २, भक्षय २, त्रोटय २, नाशय २, मम शत्रून् वशीकुरु २, हुं फट् स्वाहा ।। कामरत्न तन्त्र उच्चाटन प्रकरण मं० ५-७ ॥ | इत्यादि मन्त्र जपते, मद्य मासादि यथेष्ट खाते पीते, भृकुटी के बीच में सिन्दूर रेखा देते, कभी २ काली आदि के लिये किसी आदमी को पकड मार होम कर कुछ २ उसका मास खाते भी हैं । जो कोई भैरवीचक्र में जावे मद्य मांस न पीवे न खावे तो उसको मार होम कर देते हैं। उनमें से जो अघोरी होता है वह मृतमनुष्य का भी मांस खाता है अजरी बजरी करनेवाले विष्ठा मूत्र भी खाते पीते हैं। एक चोलीमार्गी और दूसरे वाजमार्गी भी होते है चोली मार्गवाले एक गुप्त स्थान वा भूमि में एक स्थान बनाते है वहा सब की स्त्रिया, पुरुष, लड़की, लड़की, बहिन, माता, पुत्रवधू आदि सब इकडे हो सब लोग मिलमिला कर मांस खाते, मद्य पीते, एक स्त्री को नग कर उसके गुप्त इन्द्रिय की पूजा सय पुरुष करते हैं और उसका नाम दुर्गादेवी धरते हैं। एक पुरुष को नंगा कर उसके गुप्त इन्द्रिय की पूजा सब स्त्रिया करती हैं जब मद्य पी पी के उन्मत्त होजाते हैं तब सव स्त्रियों के छाती के वस्त्र जिस को चोळी कहते हैं एक बड़ी मट्टी की नांद में सब वस्त्र मिलाकर रख के एक एक पुरुष उसमें हाथ डाल के जिसके हाथ में जिसका वन्न वे वह माता, वहिन, कन्या और पुत्रवधू क्यों न हो उस समय के लिये वह उसकी स्त्री होजाती है । आपस में कुकर्म करने और बहुत नशा चढ़ने से जूते आदि से लड़ते भिड़ते हैं जब प्रात:काल कुछ अधेरे अपने २ घर को चले जाते हैं तव माता २, कन्या २, वाहन २, | और पुत्रवधू २ होजाती हैं। और बीजमार्गी श्री पुरुष के समागम कर जल में वीर्य |