पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८२

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| सत्यार्थप्रकाशः ।। ८. ५ वैष्णव कहाते हैं एक नारायण को छोड़ दूसरे किसी को नहीं मानते महादेव के लिङ्ग का दर्शन भी नहीं करते क्योंकि हमारे ललाट में श्री विराजमान है वह लेजित होती है आलमन्दारादि स्तोत्र के पाठ करते हैं नारायण की मन्त्रपूर्वक पूजा करते हैं मांस नहीं खाते न मद्य पीते हैं फिर अच्छे क्यों नहीं ? ( उत्तर ) इस तुम्हारे तिलक को हरिपद कृति इस पीली रेखा को श्री मानना व्यर्थ है क्योंकि यह तो हाथ की कारीगरी और ललाट का चित्र है जैसा हाथी का ललाट चित्र विचित्र करते हैं तुम्हारे ललाट में विष्णु के पद का चिन्ह कहां से आया ? क्या कोई वैकुण्ठ में जाकर विष्णु के पग का चिन्ह ललाट में कर आया है ? (विवेकी) और श्री जड़ है वा चेतन ? ( वैष्णव) चेतन है। ( विवेकी ) तो यह रेखा जड होने से श्री नहीं है। हम पूछते हैं कि श्री बनाई हुई है वा विना बनाई ? जो विना बनाई है तो यह श्री नहीं क्योकि इसको तो तुम नित्य अपने हाथ से बनाते हो फिर श्री नहीं हो सकती जो तुम्हारे ललाट में श्री हो तो कितने ही वैष्णव का बुरा मुख अर्थात् शोभारहित क्यों दीखता है ? ललाट में श्री और घर २ भीख मांगते और सदावर्त लेकर पेट भरते क्यों फिरते हो ? यह वात सीडी और निर्लज्ञों की है कि कपाले में श्री और महादरिद्रों के काम हो । इनमें एक परिकाल' नामक वैष्णव भक्त थी वह चोरी डाका मार छले कपट कर पराया धन हर वैणवों के पास धर प्रसन्न होता था एक समय उसको चोरी में पदार्थ कोई नहीं मिला कि जिसको लूटे, व्याकुल होकर फिरता था नारायण ने समझा कि हमारा भक्त दुःख पाता है सेठजी का स्वरूप धर अंगूठी आदि आभूषण पहन रथ में बैठ के सामने आये तब तो परिकाल रथ के पास गया सेठ से कहा सब वस्तु शीव्र उतार दो नही तो मार डालूंगा । उतारते २ अगूठी उतारने में देर लगी परिकाल ने नारायण की अगुली कोट अंगूठी ले ली नारायण बड़े प्रसन्न हो चतुर्भुज शरीर बना दर्शन दिया कहा कि तू मेरा बड़ा प्रिय भक्त है क्योंकि सब धन मार लूट चोरी कर वैष्णवों की सेवा करता है इसलिये त धन्य है। फिर उसने जाकर वैरणव के पास सब गहने धर दिय । एक समय परिकाल को है।इ साहूकार नेफर कर जहान में विटा के देशान्तर में लेगया वहा से जहाज़ में सुपारी भर परि काल में एक सुपारी तोड आधा टुकड़ा कर वनिये से कहा यह मेरी अथ सुपारी जहाजे में वर दोश्नर लिख दो कि जहाज में अाधी सुपारी परिकाल की । ६ इनिरे ने कहा कि चाहे तन हजार सुपारी खेलना पर कालने कहा नहीं हम अवम नहीं ।