पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

एकादशसमुल्लास, ॥ है जो हम झूठ मूठ लें हमको तो आधी चाहिये बनियां बिचारा भोला भाला था उसने लिख दिया जब अपने देश में बन्दर पर जहाज़ आया और सुपारी उतारने की तैयारी हुई तब परिकाल ने कहा हमारी आधी सुपारी दे दो बनियां वही आधी सुपारी देने लगा तब परिकाल झगड़ने लगा मेरी तो जहाज़ मे थाधी सुपारी है आधा बांट लूगाराजपुरुषों तक झगडा गया परिकाल ने बनियें का लेख दिखलाया कि इस ने आधी सुपारी देनी लिखी है बनियां बहुतसा कहता रहा परन्तु उसने न माना आधी सुपारी लेकर वैष्णवों को अर्पण करदी नब तो वैष्णव बडे प्रसन्न हुए अबतक उस- डाकू चार परिकाल की मूर्ति मन्दिरों में रखते हैं यह कथा भक्तमाल में लिखी है बुद्धिमान् देखलें कि वैष्णव, उनके सेवक और नारायण तीनों चरमण्डली हैं वा नहीं यद्यपि मतमतान्तरों में कोई थोडा अच्छा भी होता है तथापि उस मत में रहकर सर्वथा अच्छा नहीं हो सकता। अब देखो वैष्णवों में फूट टूट भिन्न २ तिलक कण्ठी धारण करते हैं, रामानन्दी बगल में गोपीचन्दन बीच में लाल, नीमावत देना पतली रेखा बीच में काला विन्दु, माधव काली रेखा और गौड बङ्गाली कटारी के तुल्य और रामप्रसादवाले दोनों चांदला रेखा के बीच में एक सफेद गोल टीका इत्यादि इनका कथन विलक्षण २ है रामानन्दी नारायण के हृदय में लाल रेखा को लक्ष्मी का चिन्ह और गोसाई श्रीकृष्णचन्द्रजी के हृदय में राधा विराजमान है ईत्यादि कथन करते है ।। एक कथा भक्तमाल में लिखी है कोई एक मनुष्य वृक्ष के नीचे सोता था सोता २ ही मरगया ऊपर से काक ने विष्ठा करदी वह ललाट पर तिलकाकार होगई थी वहा यम के दूत उसको लेने आये इतने में विष्णु के दूत भी पहुंच गये दोनों विवाद करते थे कि यह इमार स्वामी की आज्ञा है हम यमलोक में ले जायगे विष्णु के देत ने कहा कि हमारे स्वामी की आज्ञा है वैकुण्ठ में लेजाने को देख इसके ललाट में वैष्णवी तिलक है तुम कैसे ले जाओगे तव तो यम के दूत चुप होकर चले गये विष्णु के दूत सुख से उसको वैकुण्ठ में लेगये नारायण ने उसको वैकुण्ठ मे रक्खा देखो जब अकस्मात् तिलक बनजाने का ऐसा माहात्म्य है तो जो अपनी प्रीति और हाथ से तिलक करते हैं वे नरक से छूट वैकुण्ठ में जावे तो इसमें क्या आश्चर्य है । हम पूछते हैं कि जब छोटे से तिलक के करने से वैकुण्ठ में जावे तो सब मुख के ऊपर लेपन करने वा कालामुख करने वा शरीर पर लेपन करने से वैकुण्ठ से भी आग सिधार । जाते है वो नहीं ? इससे ये बातें सब व्यर्थ हैं । अत्र इनमें बहुत से खाखी लकड़े