पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८५

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| एकादशसमुल्लासः ।। ३७५ । को कहते हैं । ( खाखी ) देख हम रात दिन नंगे रहते, धूनी तापते, गांजा चरस के सैकड़ों दम लगात, तीन २ लोटा भांग पीते गांजा भांग धतूरा की पत्ती की भाजी (शाक ) बना खाते, संखिया और अफीम भी चट निगल जाते, नशा में गर्क रात दिन बेगम रहते, दुनिया को कुछ नहीं समझते भीख मांगकर टिक्कड़ बना खाते रात भर ऐसी खांसी उठती जो पास में सोवे उसको भी नींद कभी ने आवे इत्यादि सिद्धियां और साधूपन हम में हैं फिर तू हमारी निन्दा क्यों करता है ? चेत् बाबूड़े जो हमको दिक्क करेगा हम तुमको भसम कर डालेंगे। ( पण्डित ) ये सब लक्षण असाधु मूर्ख और गवर्गण्डों के है साधुओं के नहीं सुन साध्नोति पराणि धर्मकार्याणि स साधुः जो धर्मयुक्त उत्तम काम करे सदर परोकार में प्रयुत्त हो, कोई दुर्गुण जिसमें न हो, विद्वान्, सत्योपदेश से सब का उपकार करे उस को साधु कहते हैं । ( खाखी ) चल बे तू साधू के कर्म क्या जाने सन्तों का घर बड़ा है किसी सन्त से अटकना नहीं, नहीं तो देख एक चीमटा उठाकर मारेगा, कपाल फुड़वा लेगः । ( पण्डित ) अच्छा खाखी जो अपने आसन पर हम से बहुत गुस्से मत हो जानते हो राज्य कैसा है किसी को मारोगे तो पकड़े जाओगे कारावास भोगोगे बेत खाओगे वा कोई तुम को भी मार बैठेगा फिर क्या करोगे यह साधु का लक्षण नहीं । ( खाखी ) चलवे चेले किस राक्षस का मुख दिखलाया। (पण्डित) तुमने कभी किसी महात्मा का संग नहीं किया है नहीं तो ऐसे जड़ मूख न रहते। ( खाखी ) हम अप ही महात्मा हैं हमको किसी दूसरे की गर्ज नहीं । ( पंडित ) जिनके भाग्य नष्ट होते हैं उनकी तुम्हारी सी बुद्धि और अभिमान होता है । खाखी चला गया आसन पर और पण्डित धर को गये जब सध्या अर्ती होगई तब उस खाखी को बुड्ढा समझ बहुतसे खाखी ‘‘दण्डोत २' कहते साष्टांग करके बैठे उस खाखी ने पूछा अर्थ रामदासिया ! तू क्या पढ़ा है ? ( रामदास ) महाराज मैंने “वेस्नुसहसरनाम पढा है। अबे गोविन्दासिये ' तू क्या पढा है ? (गोविन्दासिया) मैं रामसतवराज पढ़ा हूं अमुक खाखीजी के पास से, तव रामदास बोला कि महाराज आप क्या पढे हैं ? ( खाखीज ) हम गीता पढे हैं। ( रामदास ) किसके पास १ ( खाखीजी) चलबे छोकरे हम किसी को गुरु नहीं करते देख हम ‘‘परागराज' में रहते थे हमको arक्खर नहीं आता था जब किसी लम्बी योतीवाले पंडित को देखता था तब गीता के गोटके में पूछता था कि इस कलवाले अक्षर का क्या