पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८६

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सत्यार्थप्रकाश. }} नाम है ? ऐसे पूछता २ अठारा अध्याय गीता रगड़ मारी गुरू एक भी नहीं किया। भला ऐसे विद्या के शत्रुओं को अविद्या घर करके ठहरे नहीं तो कहां जाय ? || । ये लोग विना नशा, प्रमाद, लड़ना, खाना, सोना, झांझपटना, घटा घडि. याल शख बजाना, धूनी चिता रखनी, नहाना, धोना, सव दिशाओं में व्यर्थ घूमते फिरने के अन्य कुछ भी अच्छा काम नहीं करते चाहे कोई पत्थर को भी पिघला ले परन्तु इन खाखियो के आत्माओं को वध कराना कठिन है क्योंकि बहुधा वे शुद्वर्ण मजूर, किसान, कहार आदि अपनी मजूरी छोड़ केवल खाख २मा के वैरागी खाखी आदि होजाते हैं उनको विद्या व सत्सग आदि को माहात्म्य नहीं जान पड़ सकता। इनमें से नाथों का मन्त्र “नमः शिवाय | खाखियों का ‘‘नसिंहाय नम:' । रामवतों का श्रीरामचन्द्राय नम.' अथवा 'सीतारामाभ्या नम. | कृष्णपासकों की {"श्रीराधाकृष्णभ्यां नम 'नमो भगवते वासुदेवाय और वगालियों का गोविन्दाय नम " | इन मन्त्रों को कान में पढ़नेमात्र से शिष्य कर लेते हैं और ऐसी २ शिक्षा करते हैं कि बच्चे तूचे का मन्त्र पढ़ल }} जल पवितर सथल पवितर और पवितर कुआ । शिव कहे सुन पार्वती तूबा पवितर हुश्रा ॥ भला ऐसे की योग्यता साधु वा विद्वान् होने अथवा जगत् के उपकार करने की कभी हो सकती है ? खाखी रात दिन लक्कड़ छाने ( जंगली कंडे ) जलाया करते हैं एक महीने में कई रुपये की लकड़ी फेंक देते हैं जो एक महीने की लकड़ी के मूल्य से कम्बलादि वस्त्र लेलें तो शतांश धन से आनन्द में रहैं उनको इतनी बुद्धि कहां से आवे ? और अपना नाम उसी धूनी में तपने ही से तपस्वी धर रक्खा है जो इस प्रकार तपस्वी होसकें तो जंगली मनुष्य इनसे भी अधिक तपस्वी होजावे जो जटा बढ़ाने, राख लगाने वा तिलक करने से तपस्वी होजाय तो सब कोई कर सके ये ऊपर के त्यागस्वरूप और भीतर के महासंग्रही होते हैं । | ( प्रश्न ) कबीरपथी तो अच्छे हैं ? ( उत्तर ) नहीं । ( प्रश्न ) क्यों अच्छे नहीं ? पापाणादि मूर्तिपूजा का खंडन करते हैं,कवीरसाइव फूलों से उत्पन्न हुए और अन्त | में भी फल है।गये ब्रह्मा विष्णु महादेव का जन्म जव नहीं था तब भी कबीर साहब थे बड़े सिद्ध, ऐसे कि जिस बात को वेद पुराण भी नहीं जान सकता उसको कवार