पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८७

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एकादशसमुल्लासः ।।। ३७७ जानते हैं सच्चा रस्ता है सो कवर ही ने दिखलाया है इनका मन्त्र * सत्यनाम कबीर' आदि है (उत्तर) पाषाणादि को छोड़ पलंग, गद्दी, तकिये, खड़ाऊं ज्योति अर्थात् दीप आदि का पूजना पापाणमूर्ति से न्यून नहीं, क्या कबीर साहब भुनुगा था वा कलिया था जो फूलों से उत्पन्न हुआ ? और अन्त में फूल होगया? यही जो यह बात सुनी जाती है वही सच्ची होगी कि कोई जुलाहा काशी में रहता था। उसके लडके बालक नहीं थे एक समय थोडीसी रात्री यी एक गली में चला जाता था तो देखा सड़क के किनारे में एक टोकनी में फूलों के बीच में उसी रात का जन्मा बालक था वह उसको उठा लेगया अपनी स्त्री को दिया उसने पालन किया जब वह बड़ा हुआ तब जुलाहे का काम करता था किसी पण्डित के पास संस्कृत पढ़ने के लिये गया उसने उसका अपमान किया, कहा कि हम जुलाहे को नहीं पढ़ाते, इसी प्रकार कई पण्डितों के पास फिर। परन्तु किसी ने न पढ़ाया, तब ऊट पटांग भापा बनाकर जुलाहे आदि नीच लोगों को समझाने लगा तंबूरे लेकर गाता था भजन बनाता था विशेष पण्डित, शास्त्र, वेदों की निन्दा किया करता था कुछ मूर्ख लोग उसके जाल में फंस गये जब मरगया तब लोगों ने उसको सिद्ध बना लिया जो २ उसने जीते जी बनाया था उसको उसके चेले पढ़ते रहे कान को मुंद के जो शब्द सुना जाता है उसको अनहत शव्द सिद्धान्त ठहराया मनकी वृत्ति को ‘सुरति कहते है उसको उस शब्द सुनने में लगाना उसी को सन्त और परमेश्वर का ध्यान बतलाते हैं वहां काल नहीं पहुंचता बर्थी के समान तिलक और चन्दनादि लकड़े की कठी बांधते हैं भला विचार के देखो कि इसमें आत्मा की उन्नति और ज्ञान क्या बढ़ सकता है ? यह केवल लड़कों के खेल के समान लीला है । (प्रश्न) पजावे देश में नानकजी ने एक मार्ग चलाया है क्योंकि वे भी मूर्ति का खंडन करते थे मुसलमान होने से बचाये वे साधु भी नहीं हुए किन्तु गृहस्थ यने रहे देखो उन्होंने यह मत्र उपदेश किया है इसी से विदित होता है कि उनका आशय अच्छा था:-- ॐ सत्यनाम कत्त पुरुष निर्भो निर्वैर अकालमूर्त अजोनि सहभंगुरु प्रसाद जप आदि सच जुगादि सच है भी सच। नानक होसी भी सच ॥ जपजी पौड़ी ॥ १ ॥ (ओ३म् ) जिसका सत्य नाम है वह कर्ता पुरुष भय और वैररहित अकाल मूर्ति जो काल में और जोनि में नहीं आता प्रकाशमान है उसी का जप गुरु की | | | |