पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८९

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-- -- - - एकसिमुल्लासः ।। उनका वचन ॥ भरम रोग तब ही मिट्या, रट्या निरञ्जन राइ । तब जम का कागज फठ्या, कट्या करम तव जाइ॥ साखी ॥ ६॥ अब बुद्धिमान् लोग विचार लेखें कि राम २' कहने से भ्रम जो कि अज्ञान है वा यमराज का पापातुकूल शासन अथवा किये हुए कर्म कभी छूट सकते हैं। वा नहीं ? यह केवल मनुष्यों को पापो में फंसाना और मनुष्यजन्म को नष्ट करदेना है। अब इनका जो मुख्य गुरु हुआ है ‘‘रामचरण” उसके वचन - महमा नांव प्रताप की, सुण सरवण चित लाइ ।। रामचरण रसना रटौ, क्रम सकल झड़ जाइ ।। । जिन जिन सुमर्या लांब कें, सो सब उतरया पार. रामचरण जो वीस, सो ही जम के द्वार। | रास विना सच झूठ बताया ॥ राम भजत छुट्या सच क्रम्मा । चंद अरु सूर देइ परकम्मा । राम कहे तिन कू भै नाहीं । तीन लोक में कीरति गाहीं ॥ । राम रटत जम जोर न लागै ॥ राम नाम लिख पथर तराई। भगति हेति औतार ही धरही । ऊंच नीच कुल भेद विचारे । सो तो जनम आपण हारे ।। संता कै कुल दीसै नांहीं । राम राम कह राम सम्हांहीं ॥ ऐसो कुण जो कीरति गा३ । हरि हरि जन को पार न पायें । | राम सेता का अन्त ने अवै । अाप अापकी बुद्धि सम गावें ।।