पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९

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भय और शङ्कारूप भूत, प्रेत, शाकिनी, डाकिनी आदि अनेक भ्रमजाल दुःखदायक होते हैं । देखो जब कोई प्राणी मरता है तब उसका जीव पाप के वश होकर पुण्य परमेश्वर की व्यवस्था से सुख दुःख के फल भोगने के अर्थ जन्मान्तर धारण करता है। क्या इस अविनाशी परमेश्वर की व्यवस्था का कोई भी नाश कर सकता है ? अज्ञानी लोग वैद्यकशास्त्र व पदार्थविद्या के पढने सुनने और विचार से रहित होकर सन्निपात ज्वरादि शारीरिक और उन्मादकादि मानस रोगों का नाम भूत प्रेतादि धरते हैं । उनका औषधसेवन और पध्यादि उचित व्यवहार न करके उन धूर्त, पाखण्डी, महामूर्ख, अनाचारी, स्वार्थी, भङ्गी, चमार, शूद्र, म्लेच्छादि पर भी विश्वासी होकर अनेक प्रकार के ढोंग, छल, कपट और उच्छिष्ट भोजन, डोरा, धागा आदि मिथ्या मन्त्र यन्त्र बांधते बंधवाते फिरते हैं, अपने धन का नाश, सन्तान आदि की दुर्दशा और रोगों को बढ़ाकर दुःख देते फिरते हैं । जब आंख के अंधे और गांठ के पूरे उन दुर्बुद्धि पापी स्वार्थियों के पास जाकर पूछते हैं कि महाराज “इस लड़का, लड़की, स्त्री और पुरुष को न जाने क्या होगया है ?” तब वे बोलते हैं कि “इसके शरीर में बड़ा भूत, प्रेत, भैरव, शीतला आदि देवी आगई है जबतक तुम इसका उपाय न करोगे तबतक ये न छूटेंगे और प्राण भी ले लेंगे । जो तुम मलीदा व इतनी भेंट दो तो हम मन्त्र जप पुरश्चरण से झाड़ के इनको निकाल दें” तब वे अंधे और उनके सम्बन्धी बोलते हैं कि “महाराज ! चाहे हमारा सर्वस्व जावो परन्तु इनको अच्छा कर दीजिये” तब तो उनकी बन पड़ती है । वे धूर्त कहते हैं “अच्छा लाओ इतनी सामग्री, इतनी दक्षिणा, देवता को भेंट और ग्रहदान कराओ” । झांझ, मृदङ्ग, ढोल, थाली लेके उसके सामने बजाते गाते और उनमें से एक पाखण्डी उन्मत्त होके नाच कूद के कहता है “मैं इसका प्राण ही ले लूँगा” तब वे अंधे उस भङ्गी चमार आदि नीच के पगों में पड़ के कहते हैं “आप चाहें सो लीजिये इसको बचाइये” तब वह धूर्त बोलता है “मैं हनुमान हूं, लाओ पक्की मिठाई, तेल, सिन्दूर, सवामन का रोट और लाल लंगोट” “मैं देवी वा भैरव हूँ, ला पांच बोतल मद्य, बीस मुर्गी, पांच बकरे, मिठाई और वस्त्र” जब वे कहते हैं कि “जो चाहो सो लो” तब तो वह पागल बहुत नाचने कूदने लगता है, परन्तु जो कोई बुद्धिमान उनकी भेंट पांच जूता दंडा वा चपेटा लातें मारे तो उनके हनुमान् देवी और भैरव फट प्रसन्न होकर भाग जाते हैं, क्योंकि वह उनका केवल धनादिहरण करने के प्रयोजनार्थ ढोंग है ॥