पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९१

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एकादशस्वभुः ।। ३८३ इन सब में ऊपर के रामचरण के वचनों के प्रमाण से चला करके ऊच नीच का कुछ भेद नहीं ब्राह्मण से अन्त्यज पर्यन्त इनमें चेले वनते हैं अब भी कूडापंथी से ही हैं क्योंकि मही के कूडो में ही खाते हैं। और साधुओं की जूठन खाते हैं, वेदधर्म से माता पिता संसार के व्यवहार से बहका कर छुड़ा देते और चेला बना लेते हैं और राम नाम को महामन्त्र मानते हैं और इसी को ‘‘छुच्छम'* वेद भी कहते हैं, राम २ कहने से अनन्त जन्मों के पाप छूट जाते हैं इसके विना मुक्ति किसी की नहीं होती। जो श्वास और प्रश्वास के साथ राग २ कहना बतावे उसको सत्यगुरू कहते हैं और सत्यगुरू को परमेश्वर से भी बड़ा मानते हैं और उसकी मूर्ति का ध्यान करते हैं साधुओं के चरण धो के पीते है, जब गुरू से चला दूर जावे तो गुरू के नख और डाढी के बाल अपने पास रख लेवे, उसका चरणामृत नित्य लेवे, रामदास और हररामदास के वाणी के पुस्तक को वेद से अधिक मानते हैं उसकी परिक्रमा और आठ दण्डवत् प्रणाम करते हैं और जो गुरू समीप हो तो गुरू को दण्डवत् प्रणाम कर लेते है स्त्री वा पुरुष को राम ३ एकसा ही मन्त्रोपदेश करते हैं और नामस्मरण ही से कल्याण मानते पुन पढने में पाप समझते है, उनकी साखी: पंडताइ पाने पडी, ओ धूरब ला पाए । राम २ सुमरयां विना, इग्यो रीतो आप ॥ वेद पुराण पढे पढ़ गीता, राम भजन विन रह गये रीता ॥ | ऐसे २ पुस्तक बनाये हैं, स्त्री को पति की सेवा करने में पाप और गुरू साव की सेवा में धर्म बतलाते हैं वर्णाश्रम को नहीं मानते। जो ब्राहाण रामसनेही न हो तो उस को नीच और चांडाल, रामसनेही हो तो उसको उत्तम जानते हैं अब ईश्वर का अवतार नहीं मानते और रामचरण का वचन जो ऊपर लिख आये कि| भगति हेति श्रौतार ही धरती ।। भक्ति और सन्तों के हित अवतार को भी मानते हैं ३,याद पाण्डे प्रपद इनका जितना है सो सव आर्यावर्त देश का अहितकारक हैं इतने ही बुद्धिमान । बहुतसा समझ लेंगे ।। { प्रश्न ) गोकुलिये गुसाइयों का मत तो बहुत अच्छा हैं देवो केमा ऐश्वर्य गर्ने ० कच्छन । सुद६ ।।