पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९२

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३८४ सत्यार्थप्रकाशः ॥ हैं क्या यह ऐश्वर्यलीला के विना ऐसा हो सकता है ? ( उत्तर) यह एश्वर्य गृहस्थ लोगों का है गुसाइयों का कुछ नहीं । ( प्रश्न ) वाइ २ | गुसाइयों के प्रताप से है क्योंकि ऐसा ऐश्वर्य दूसरों को क्यों नहीं मिलता ? ( उत्तर ) दूसरे भी इसी प्रकार का छल प्रपञ्च रचें तो ऐश्वर्यं मिलने में क्या सन्देह है ? और जो इनसे अधिक धूर्तता करें तो अघिक भी ऐश्वर्य हो सकता है । । प्रश्न ) वाहजी वाह! इसमें क्या धूर्तता है। यह तो सब गोलोक की लीला है। ( उत्तर ) गोलोक की लीला नहीं किन्तु गुसाइयों की लीला है जो गोलोक की लीला है तो गोलोक भी ऐसा ही होगा। यह मत “तैलङ्ग देश से चला है क्योंकि एक तैलङ्गी लक्ष्मण भट्ट नामक ब्राह्मण विवाह कर किसी कारण से माता पिता और स्त्री को छोड़ काशी में जा के उसने संन्यास ले लिया था और झूठ बोला था कि मेरा विवाह नहीं हुआ, दैवयोग से उसके माता पिता और स्त्री ने सुना कि काशी में सन्यासी होगया है उसके माता पिता और स्त्री काशी में पहुंच कर जिसने उसको संन्यास दिया था उससे कहा कि इसको संन्यासी क्यों किया, देखो ! इसकी युवती स्त्री है और स्त्री ने कहा कि यदि आप मेरे पति को मेरे साथ न करें तो मुझ को भी संन्यास दे दीजिये तब तो उसको बुला के के हो कि तू वडा मिथ्यावादी है, सन्यास छोड़ गृहाश्रम कर, क्योंकि तूने झूठ बोलकर संन्यास लिया । उसने पुन वैसा ही किया, सन्यास छोड़ उसके साथ हो लिया। देखो! इस मत का मूल ही झूठ कपट से जमा जब तैलङ्ग देश में गये उसको जाति में किसी ने न लिया तब वहा से निकल कर चूसने लगे ‘‘चरणार्गढ़ जो काशी के पास है उसके समीप चपारण्य नामक जङ्गल मे चले जाते थे वहा कोई एक लइके को जङ्गल में छोड़ चारों ओर दूर २ ऑगी जलाकर चला गया था क्योंकि छोड़नेवाले ने यह समझा था जो अागी न जलाऊंगा तो अभी कोई जीव मार डालेगा लक्ष्मण भट्ट और उसकी स्त्री ने लड़के को लेकर अपना पुत्र बना लिया फिर काशी में जा रहे, जब वह लड़का बडा हुआ तव उसके भी बाप का शरीर छूट गया काशी में बाल्यावस्था से युवावस्था तक कुछ पढ़ता भी रहा, फिर और कहीं जा के एक विcणुस्वामी के मदिर में चेला होगया वहा से कभी कुछ खटपट होने से काशी को फिर चला गया और सन्यास लेलिया फिर कोई वैसा ही जातिवहिष्कृत ब्राह्मण काशी में रहता था उसकी लडकी युवती थी उसने इससे कहा कि तू सन्यास छोड़ मेरी लडकी से । विवाह करले वैसा ही हुआ। जिसके बाप ने जैसी लीला की थी वैसी पुन्न क्यों न करे ' !