पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९६

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३८८ अत्यार्थप्रकाश: ॥ मत से भिन्न मार्ग के वाक्यमात्र को भी गोसाइयों के चेला चेली कभी न सुनें न ग्रहण करें यही उनके शिष्यों का व्यवहार प्रसिद्ध है ।। ७ ।। वैसे ही सब वस्तुओं । का समर्पण करके सब के बीच में ब्रह्मबुद्धि करे उसके पश्चात् जैसे गङ्गा में अन्य जल मिलकर गङ्गारूप होजाते हैं वैसे ही अपने मत में गुण और दूसरे के मन में । दोष इसलिये अपने मन में गुणों का वर्णन किया करें ।।८॥ अव देखिये गोसाइयों का मत सव मतों से अधिक अपना प्रयोजन सिद्ध करनेडारा है । भला, इन गोसाइयों को कोई पूछे कि ब्रह्म का एक लक्षण भी तुम नहीं जानते तो शिष्य शिष्याओं को ब्रह्मसम्वन्ध कैसे कर सकोगे १ जो कहो कि हम हीं ब्रह्म हैं हमारे साथ सम्बन्ध होने से सम्बन्ध होजाता है सो तुम में ब्रह्म के गुण कर्म स्वभाव एक भी नहीं हैं पुनः । क्या तुम केवल भोग विलास के लिये ब्रह्म बन बैठे हो ? { भला शिष्य और शिष्याओं । को तो तुम अपने साथ समर्पित करके शुद्ध करते हो परन्तु तुम और तुम्हारी स्त्री, कन्या तथा पुत्रवधू आदि असमर्पित रह्जाने से अशुद्ध रह गये वा नहीं ? और तुम । असमर्पित वस्तु को अशुद्ध मानते हो पुन: उनसे उत्पन्न हुए तुम लोग अशुद्ध क्यों नहीं ? इसलिये तुमको भी उचित है कि अपनी स्त्री, कन्या तथा पुत्रवधू आदि को अन्य मतवालो के साथ समर्पित कराया करो। जो कहो कि नहीं २ तो तुम भी अन्य स्त्री पुरुष तथा वनादि पदार्थों को समर्पित करना कराना छोड़ दे। भला अवलें जो हुआ सो हुआ परन्तु अब तो अपनी मिथ्या प्रपञ्चादि बुराइयों को छोड़ो और सुन्दर ईश्वरोक्त वेदविहित सुपथ में आकर अपने मनुष्यरूपी जन्म को सफल कर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इस चतुष्टय फल को प्राप्त होकर आनन्द भोगे । और देखिये ! ये गोसाई लोग अपने सम्प्रदाय को “पुष्टि मार्ग कहते हैं अर्थात् खाने, पीने, पुष्ट होने और सब स्त्रियों के संग यथेष्ट भोग विलाच करने को पुष्टिमार्ग कहते हैं परन्तु इनसे पूछना चाहिये कि जब वड़े दुःखदायी भगंदरादि रोगग्रस्त होकर ऐसे झक झक मरते हैं कि जिसको यहीं जानते होंगे सच पूछो तो पुष्टिमार्ग नहीं किन्तु कुप्तिमार्ग है जैसे कुष्ठी के शरीर की सब धातु पिघल २ के निकल जाती हैं और विलाप करता हुआ शरीर छोड़ता है ऐसी ही लीला इनकी भी देखने में आती है इसलिये नरकमार्ग भी इसी को कहना संघटित हो सकता है क्योंकि दु ख का नाम नरक और सुख का नाम स्व में है। इसी प्रकार मिथ्या जाल रचके विचारे भोले भाले मनुष्यों को जाल में फंसाया और अपने आप को श्रीकृब्ण मान कर सव के स्वामी बनते २६ ? यह कहते है कि जितने दैवी जीव गोलोक से यहां आये हैं उनके उद्धार करने के