पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९८

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| खत्यार्थप्रकाशः | बीबियों की सेना हुई। अब जो गोसाई लोग शिष्य और शिष्याओं का तन मन तथा धन अपने अर्पण करा लेते हैं सो भी ठीक नहीं क्योंकि तन तो विवाह समय में स्त्री और पति के समर्पण होजाता है पुनः मन भी दूसरे के समर्पण नहीं हो सका, क्योंकि मन ही के साथ तन का भी समर्पण करना बन सकता और जो करें तो व्यभिचारी कहावेंगे, अव रहा धन उसकी यही लीला समझो अर्थात् मन के विना कुछ भी अर्पण नहीं हो सकता इन गोसाइर्यों का अभिप्राय यह है कि कमानें तो चला और आनन्द करें हम। जितने वल्लभ संप्रदायी गोसाई लोग है वे अब ल तैलगी जाति में नहीं हैं और जो कोई इनको भूले भटके लड़की देता है वह भी जातिवाह्य होकर भ्रष्ट हो जाता है क्योकि ये जाति से पतित किये गये और विद्याहीन रात दिन अमाद में रहते है। और देखिये | जब कोई गोसाईजी की पधरावनी करता है तब उसके घर पर जा चुपचाप काठ की पुतली के समान बैठा रहता है न कुछ बोलता न चालता, विचारा बोले तो तव जो मूर्ख न होवे “मूर्खाणां बल मौनम् क्योंकि मूखों का बल मौन है जो बोले तो उसकी पोल निकल जाय परन्तु स्त्रियों की ओर खूब ध्यान लगाकर ताकता रहता है और जिमकी ओर गोसाईज देखें तो जानो बड़े ही भाग्य की बात है और उसका पति, भाई, बन्धु, माता, पिता वडे प्रसन्न होते हैं वहां सब स्त्रिया गोसाईजी के पग छूती हैं जिस पर गोसाईजी का मन लगे वा कृपा हो उसकी अंगुली पैर से दबा देते है वह स्त्री और उसके पति आदि अपना धन्यभाग्य समझते हैं और उस स्त्री से पति आदि सब कहते हैं कि तू गोसाईजी की चरणसेवा में जा और जहा कहीं उसके पति आदि प्रसन्न नहीं होते वहाँ ठूती और कुटनियों से काम सिद्ध करा लेते हैं। सच पूछो तो ऐसे काम करनेवाले उनके मन्दिरों में और उनके समीप बहुतसे रहा करते हैं। अब इनकी दक्षिणा की लीला अर्थात् इस प्रकार मांगते हैं लाओ भेट गोसाईजी की, वहूजी की, लाल जी की, वेटीजी की, मुखियाजी की, बाहरियाजी की, गवैयाजी की और ठाकुरजी की, इन सात दुकानों से यथेष्ट माल मारते है। जब कोई गोसाईजी का सेवक मरने लगता है तब उसकी छाती में पग गोसाईजी बरते हैं और जो कुछ मिलता है उसको गोसाईजी गड़क्क कर जाते है क्या यह काम महाब्राह्मण और कर्टिया वा मुर्दावली के समान नहीं है १ । कोई २ चेला विवाह में गरसाईजी को बुलाकर उन्हीं से लड़के लड़की का पाणिग्रहण करते हैं और कोई ३ सेवक जव केशरिया स्नान अर्थात् गोसाईजी के शरीर पर स्त्री लोग केशर का उनृटना करके फिर एक बड़े पात्र में पट्टा रख के गोसाईजी को स्त्री पुरुप मिल के