पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३९९

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एकादशसमुल्लास: ।। ३९१ । स्नान कराते है परन्तु विशेष स्त्री जन स्नान कराती हैं पुनः जब गोसाईजी पीताम्बर पहिर और खड़ाऊं पर चढ़ बाहर निकल आते है और धोती उसी में पटक देते हैं। फिर उस जल का अचमन उसके सेवक करते हैं और अच्छे मसाला धर के पान बीडी गोसाईजी को देते हैं वह चाब कर कुछ निगल जाते हैं शेष एक चांदी के कटोरे में जिसको उनका सेवक मुख के आगे कर देता है उसमे पीक उगल देते हैं उसकी भी प्रसादी वटती है जिसको 'खास प्रसादी कहते है। अब विचारिये कि ये लोग किस प्रकार के मनुष्य हैं जो मूढ़पन और अनाचार होगा तो इतना ही होगा बहुत से समर्पण लेते है उनमें से कितने ही वैष्णवों के हाथ का खाते हैं अन्य का नहीं, कितने ही वैष्णवों के हाथ को भी नहीं खाते लकड़े लो धो लेते हैं परन्तु अटा, गुड, चीनी, घी आदि धोये से उनका स्पर्श बिगड़ जाता है क्या करें विचारे जो इनका धोयें तो पदार्थ ही हाथ से खो बैठे। वे कहते हैं कि हम ठाकुरजी के रङ्ग, राग, भोग में बहुतसा धन लगा देते हैं परन्तु वे रङ्ग, राग, भोग आप ही करते हैं और सच पूछो तो बड़े २ अनर्थ होते हैं अर्थात् होली के समय पिचकारियां भर कर स्त्रियों के अस्पर्शनीय अवयव अर्थात् जो गुप्त स्थान हैं उन पर मारते हैं और रसविक्रय ब्राह्मण के लिये निषिद्ध कर्म हैं उसको भी करते हैं। ( प्रश्न) गुसाईजी रोटी, दाल, कढी, भात, शाक और मठरी तथा लड्डू आदि को प्रत्यक्ष हाट में बैठ के तो नहीं वेचते किन्तु अपने नौकरों चाकरो को पत्तले बांट देते हैं वे लोग वेचते हैं गुसांईजी नहीं। ( उत्तर ) जो गुसाईजी उनको मासिक रुपये देवें तो वे पत्तलें क्यों लेवें ? गुसाईजी अपने नौकरों के हाथ दाल भात आदि नौकरी के बदले में बेच देते हैं वे लजाकर हाट वजार में बेचते हैं जो गुसाईजी स्वयं बाहर बेचते तो नौकर जो त्राहाणादि हैं वे तो रसविक्रय दोष से बच जाते और अकेले गुसाईजी ही रसविक्रयरूपी शप के भागी होते प्रथम तो इस पाप में आप डूबे फिर औरों को भी समेटा और कह २ नाथद्वारा आदि में गुसाईजी भी बेचते है रसविक्रय करना नचिों का काम है उत्तम का नहीं ऐसे २ लोगों ने इस अर्यावर्त की अधोगति करदी । (प्रश्न ) स्वामीनारायण का मत कैसा है ? ( उत्तर) “याशी शीतला देवी | तादृशो वाहनः खर." जैसी गुसाईज की धनहरणादि में विचित्र लीला है वैसी ही स्वामीनारायण की भी है । देखिये ! एक ‘सहजानन्द' नामक अयोध्या के समीप एक ग्राम का जन्म हुआ था वह ब्रह्मचारी होकर गुजरात, काठियावाड़, कच्छभुज