पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४०४

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| सत्यार्थप्रकाशः }} - - - आके लेगये हमने बहुत प्रार्थना करी कि महाराज इनको न ले जाइये क्योंकि इस महात्मा के यहां रहने से अच्छा है सहजानन्दजी ने कहा कि नहीं अब इनकी वैकुण्ठ में बहुत आवश्यकता है इसलिये ले जाते हैं हमने अपनी आंख से सहजानन्दजी को और विमान को देखा तथा जो मरनेवाले थे उनको विमान में बैठा दिया ऊपर को लेगये और पुष्पों की वर्षा करते गये और जब कोई साधु बीमार पड़ता है और उसके बचने की आशा नहीं होती तव कहता है कि मैं कल रात को वैकुण्ठ में जाऊंगा सुना है कि उस रात में जो उस के प्राण न छूटें और मूर्छित होगया हो तो भी कुवे में फेंक देते हैं क्योंकि जो उस रात को न फेंक दें तो झूठे पड़े इसलिये ऐसा काम करते होंगे । ऐसे ही जब गोकुलिया गुसाई मरता है तब उनके चेले कहते हैं कि “गुसाईजी लीला विस्तार कर गये” जो इन गुसाई स्वामीनारायणवालों का उपदेश करने का मन्त्र है वह एक ही है “श्रीकृष्णः शरणं मम इसका अर्थ ऐसा करते है कि श्रीकृष्ण मेरी शरण है अर्थात् मै श्रीकृष्ण के शरणागत हूँ परन्तु इसका अर्थ श्रीकृष्ण मेरे शरण को प्राप्त अर्थात् मेरे शरणागत हों ऐसा भी हो सकता है। ये सव जितने मत हैं वे ऊटपटांग शास्त्रविरुद्ध वाक्यरचना करते हैं क्योंकि उनका विद्याहीन होने से विद्या के नियमों की जानकारी नहीं है ।।। | ( प्रश्न ) मा०३ मत तो अच्छा है ? ( उत्तर ) जैसे अन्य मतावलंबी हैं वैसा ही माध्व भी है क्योंकि यह भी चक्राकित होते हैं इनमें चक्राकिव से इतना विशेष है कि रामानुजीय एक वार चक्रांकित होते हैं और माध्व वर्ष २ में फिर २ चक्राङ्कित ९ोते जाते हैं चक्राकित कपाल में पीली रेखा और माध्व काली रेखा लगाते हैं एक ध्व पडित से किसी एक महात्मा का शास्त्रार्थ हुआ था । ( महात्मा) तुमने यह Bाली रेखा और चादला (तिलक ) क्यों लगाया ? (शास्त्री ) इसके लगाने से हम वैकुण्ठ को जायेंगे और श्रीकृष्ण का भं शरीर श्याम रंग था इसलिये हम काली । तिलक करते है (महात्मा) जो काली रेखा और चादुला लगाने से बैकुण्ठ में जाते हो । नई सय मुप काला कर ले तो कहा जाओगे ? क्या वैकुण्ठ के भी पार उतर जाओगे ? । और जैसा अकृण का सब शरीर काला था वैसा तुम भी सब शरीर काला कर लिया करते हुए का साइश्य हो सकता है इसलिये यह भी पृर्वो के सदृश ६॥