पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४०५

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५६शंखमुल्लासः ।। ३९० । (प्रश्न ) लिङ्गाङ्कित का मत कैसा है ? ( उत्तर ) जैसा चक्रांकिते का, जैसे चक्रांकित चक्र से दागे जाते और नारायण के विना किसी को नहीं मानते वैसे लिगांकित लिंगाकृति से दागे जाते और विना महादेव के अन्य किसी को नहीं मानते इनमें विशेष यह है कि लिगांकित पाषण का एक लिग सो अथवा चांदी में मढ़वा के गले में डाल रखते हैं जब पानी भी पीते हैं तब उसको दिखाके पीते हैं। उनका भी मन्त्र शैव के तुल्य रहता है ।। ब्राह्मसमाज और प्रार्थनासमाज ॥ ( प्रश्न ) ब्राह्मसमाज और प्रार्थना समाज तो अच्छा है वा नहीं ? (उत्तर) कुछ २ बातें अच्छी और बहुतसी बुरी हैं । (प्रश्न) ब्राह्मसमाज और प्रार्थनासमाज सब से अच्छा है क्योंकि इसके नियमें बहुत अच्छे हैं। (उत्तर) नियम सवश में अच्छे नहीं क्योंकि वेदविद्याहीन लोगों की कल्पना सर्वथा सत्य क्योकर हो सकती हैं ? जो कुछ ब्राह्मसमाज और प्रार्थनासमाजियों ने ईसाइमत में मिलने से थोडे मनुष्यों को बचाये और कुछ २ पाषाणादि मूर्तिपूजा को हटाया अन्य जाल ग्रन्थों के फन्दे से भी कुछ बचाये इत्यादि अच्छी बातें हैं । परन्तु इन लोगों में स्वदेशभक्त बहुत न्यून है ईसाइयों के आचरण बहुतसे लिये है खानपान विवाहादि के नियम भी बदल दिये हैं। २-अपने देश की प्रशंसा वा पूर्वजों की बड़ाई करना तो दूर रही उसके स्थान में पेटभर निन्दा करते हैं व्याख्यानों में ईसाई अदि अंगरेजों की प्रशंसा भरपेट करते हैं। ब्रह्मादि महर्षियों का नाम भी नहीं लेते प्रत्युत ऐसा कहते है कि विना अंगरेजों के सृष्टि में आज पर्यन्त कोई भी विद्वान् नहीं हुआ अय्यवर्ती लोग सदा से मूर्ख चले आये हैं इनकी उन्नति कभी नहीं हुई । ३-वेदादिको की प्रतिष्ठा तो दूर रही परन्तु निन्दा करने से भी पृथक् नहीं रहते ब्राह्मसमाज के उद्देश के पुस्तक में साधुओं की संख्या में ईसा मूसा *मुहम्मद” “नानक'और 'चैतन्य' लिखे हैं किसी ऋषि महर्षि का नाम भी नहीं लिखा। इस से जाना जाता है कि इन लोगों ने जिनका नाम लिखा है उन्हीं के मतानुसारी मतवाले हैं भला जब आर्यावर्त्त में उत्पन्न हुए हैं और इस देश का अन्न जल खाया पिया अब भी खाते पीते हैं अपने माता, पिता, पितामहदि के मार्ग को छोड़ दूसरे विदेशी मतों पर अधिक झुक जाना, = - -