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सत्यार्थप्रकाश.॥

कराओगे तो अनुमान है कि नवग्रहों के विघ्न हट जायेंगे" अनुमान शब्द इसलिये है कि जो मरजायगा तो कहेंगे हम क्या करें, परमेश्वर के ऊपर कोई नहीं है, हमने तो वहुतसा यत्न किया और तुमने कराया उसके कर्म ऐसे ही थे। और जो वचजाय तो कहते हैं कि देखो, हमारे मन्त्र, देवता और ब्राह्मणों की कैसी शक्ति है ! तुम्हारे लडके को बचा दिया। यहां यह वात होनी चाहिये कि जो इनके जप पाठ से कुछ न हो तो दूने तिगुने रुपये उन धूर्तों से ले लेने चाहिये। और जो वचजाय तो भी ले लेने चाहिये और क्योंकि जैसे ज्योतिपियो ने कहा कि "इसके कर्म और परमेश्वर के नियम तोड़ने का सामर्थ्य किसी का नहीं' वैसे गृहस्थ भी कहें कि "यह अपने कर्म और परमेश्वर के नियम से बचा है तुम्हारे करने से नहीं" और तीसरे गुरु आदि भी पुण्यदान कराके आप ले लेतेहैं तो उनको भी वही उत्तर देना, जो ज्योतिषियो को दिया था।

अब रह गई शीतला और मन्त्र तन्त्र आदि ये भी ऐसे ही ढोंग मचाते हैं कोई कहता है कि "जो हम मन्त्र पढ़ के डोरा वा यन्त्र बना देखें तो हमारे देवता और पीर उस मन्त्र यन्त्र के प्रताप से उसको कोई विघ्न नहीं होने देते" उनको वहीं ! उत्तर देना चाहिये कि क्या तुम मृत्यु, परमेश्वर के नियम और कर्मफल से भी वचा सकोगे? तुम्हारे इस प्रकार करने से भी कितने ही लड़के मर जाते हैं और तुम्हारे घर में भी मर जाते हैं और क्या तुम मरण से बच सकोगे? तब वे कुछ :| भी नहीं कह सकते और वे धूर्त जान लेते हैं कि यहा हमारी दाल नहीं गलेगी। इस-से इन सब मिथ्या व्यवहारों को छोडकर धार्मिक, सब देश के उपकार कर्ता, निष्कपटता से सब को विद्या पढ़ानेवाले, उत्तम विद्वान् लोगों का, प्रत्युपकार| करना, जैसा वे जगत् का उपकार करते हैं, इस काम को कभी न छोड़-ना चाहिये। और जितनी लीला रसायन, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण। आदि करना कहते हैं उनको भी महापामर समझना चाहिये, इत्यादि।| मिथ्या बार्तो का उपदेश बाल्यावस्था ही में सन्तानों के हृदय में डाल दें कि जिस-से स्वसन्तान किसी के भ्रमजाल में पड़के दु ख न पावें और वीर्य की रक्षा में श्रानन्द और नाश करने में दु खप्राप्ति भी जना देनी चाहिये। जैसे "देखो जिस। के शरीर में सुरक्षित वीर्य रहता है तब उसको पारोग्य, बुद्धि, वल प र' के यहत सस की प्राप्ति होती है। इसक रक्षण में यही रीति है कि विपयों की कथा, विपया लोगों का संग, विपर्यों का ध्यान, स्त्री का दर्शन, एकान्त सेवन,