पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४१३

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|| 10 Pl एकादशलमु . ।। --- - - - - - २००५ २००५ २० ११५ ० ०० ००० ०० ००००००० ५ ०००06:08, 10 February 2019 (UTC)~~ साहव के पास गया उनसे भी एसे ही जवाब सवाल हुए इतना विशेष कहा “लाशरीक खुदा उसक पैगम्बर और कुरानशरीफ के विना माने कोई निजात नहीं पा सकता, जो इस मज़हब को नहीं मानता वह दोज़खी और काफिर है वाजिबुल्कल है। जिज्ञासु सुनकर वैष्णव के पास गया वैसा ही सवाद हुआ इतना विशेष कहा कि "हमारे तिलक छापे देखकर यमराज डरता है । जिज्ञासु ने सन में समझा कि जब मच्छर, मक्खी, पुलिस के सिपाही, चोर, डाकू और शत्रु नही डरते तो यमराज के गण क्यों डरेगे? फिर आगे चला तो सव मत वालों ने अपने २ को सच्चा कहा कोई हमारा कबीर सच्चा, कोई नानक, कोई दादू, कोई वल्लभ, कोई सहजानन्द, कोई माधव आदि का बहा और अवतार बतलाते सुना, सहस्रो से पूछे उनके परस्पर एक दूसरे का विरोध देख विशेष निश्चय किया कि इनमें कोई गुरु करने योग्य नहीं क्योंकि एक २ की झूठ में नौसौ निन्न्यानवे गवाह होगय जैसे झूठे दुकानदार वा वेश्या और भडुवा आदि अपनी २ वस्तु की वड़ाई दूसरे की बुराई करते हैं वैसे ही ये है ऐसा जान: तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् । समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ॥ १ ॥ तस्मै स विद्वानुपसाय सस्य प्रशान्तचित्ताय शमन्विताय । येनाक्षरं पुरुषं वेद सत्यं प्रोवाच तान्तत्त्वतो ब्रह्मविद्याम् ॥ २ ॥ सुण्डक १ । खं० २ । मं० १२ । १३ ॥ उस सत्य के विज्ञानार्थ वह सभित्पाणि अर्थात् हाथ जोड़ अरिक्त हस्त होकर वेदवित् ब्रह्मनिष्ठ परमात्मा को जाननेहारे गुरु के पास जावे इन पाखाण्डियों के जाल में न गरे ।। १ ।। जब ऐसा जिज्ञासु विद्वान् के पास जाय उस शान्तचित्त जितेन्द्रिय समीप प्राप्त जिज्ञासु को यथार्थ ब्रह्मविद्या परमात्मा के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करे । और जिस २ साधन से वह श्रेता धर्मार्थ काम मोक्ष और परमात्मा को जान भ्रके वैसी : शिक्षा किया करे ।। २ ।। जब वह ऐजे पुरुप के पास जाकर वोलः के महाराज अब इन संप्रदायों के बखेड़े स मेरा चित्त भ्रान्त होगया क्योंकि जो मैं इनमें से किसी एक का चला । होऊंगा तो नौ सौ निन्यानवे से विरोधी होना पड़ेगा जिसके न स निन्यानवे शत्र , और एक मित्र है उसको सुख कभी नहीं हो सकता, इस भर न झ झ उदेश । कीजिये जिसको मैं ग्रहण करू । ( अप्तिविद्वान् ) ये उन भत अत्रियाजन्य विद्या