पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४१४

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सत्यार्थप्रकाशः । । विरोधी हैं, मूर्ख पामर और जंगली मनुष्य को बहकाकर अपने जाल में फंसा के अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं, वे विचारे अपने मनुष्यजन्म के फल से रहित होकर अपने मनुष्यजन्म को व्यर्थ गमाते हैं। देख ! जिस बात में ये सहस्र एक मत हों वह वेदमत ग्राह्य और जिसमें परस्पर विरोध हो वह कल्पित, झूठा, अधर्म, अग्राह्य है । ( जिज्ञासु) इसकी परीक्षा कैसे हो ? (अन्न) तू जाकर इन २ बातों को पूछ सब की एक सम्मति होजायगी, तब वह उन सहस्रों की मंडली के बीच में खडा होकर बोला कि सुनो सब लोगो ! सत्यभापण में धर्म है व मिथ्या में सब एकस्वर होकर बोले कि सत्यभाषण में धर्म और असत्यभापण में अधर्म है। वैसे ही विद्या पढ़ने, ब्रह्मचर्य करने, पुर्ण युवावस्था में विवाह, सत्सङ्ग, पुरुषार्थ, सत्य व्यवहार आदि में धर्म और अविद्या ग्रहण, ब्रह्मचर्य न करने, व्याभिचार करने, कुसङ्ग, असत्य व्यवहार, छल, कपट, हिंसा, परहानि करने आदि कम्म में सब ने एक मत होके कहा कि विद्यादि के ग्रहण में धर्म और अविद्यादि के ग्रहण में अधर्म, तव जिज्ञासु ने सव से कहा कि तुम इसी प्रकार सव जने एकमत हो सत्यधर्म की उन्नति और मिथ्यामार्ग की हानि क्यों नहीं करते हो ? वे सच बोल जो हम ऐसा करें तो हम को कौन पूछे ? हमारे चेले हमारी आज्ञा में न रहें जीविका नष्ट होजाय, फिर जो हम आनन्द कर रहे हैं सो सव हाथ से जारी इसलिये हम जानते हैं तो भी अपने २ मत का उपदेश और अाग्रह करते ही जाते हैं क्योंकि “रोटी खाइये शक्कर से दुनिया ठगिये मक्कर से ऐसी बात है, देखो ! संसार में सूधे सच्चे मनुष्य को कोई नहीं देता और न पूछता जो कुछ ढोंगबाजी और धूर्तता करता है वही पदार्थ पाता है । ( जिज्ञासु ) जो तुम ऐसा पाखण्ड चलाकर अन्य मनुष्यों को ठगते हो तुमको राजा दण्ड क्यों नहीं देता ? ( मतवाले ) हमने राजा को भी अपना चेला बना लिया है हमने पक्का प्रबन्ध किया है छूटेगा नहीं। (जिज्ञासु । जब तुम छल से अन्यमतत्थ मनुष्यों को ठग उनकी हानि करते हो परमेश्वर के सामने क्या उत्तर दोगे ? और घोर नरक में पड़ोगे, थोड़े जीवन के लिये इतना वडा अपराध करना क्यों नहीं छोडते ? ( मतवाल ) जव जैसा होगा तब देखा जाया नरक और परमेश्वर का दण्ड जब होगा तव होगा अब वो आनन्द करते हैं हमको प्रसन्नता से धनादि पदार्थ देते हैं कुछ बलात्कार से नहीं लेते फिर राजा दण्ड क्यों देवे ? ( जिज्ञासु ) जैसे कोई छाडे चालक को फुसला के धनादि पदार्थ हर लेता है जैसे उसको दण्ड मिलता है वैसे तुमको क्यों नहीं मिलता ? क्योंकि.