पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४१९

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-- -44 45 45 - = एकादशसमुल्लासः । । - -- - - - मुख्य काम है जब अपने २ अधिकार कर्मों को नहीं करते पुनः संन्यासादि नाम धराना व्यर्थ है नहीं तो जैसे गृहस्थ व्यवहार और स्वार्थ मे परिश्रम करते हैं उनसे अधिक परिश्रम परोपकार करने में संन्यासी भी तत्पर रहै तभी सब आश्रम उन्नति पर रहैं। देखो तुम्हारे सामने पाखण्ड मत बढ़ते जाते है ईसाईं मुसलमान तक होते जाते हैं तनिक भी तुम से अपने घर की रक्षा और दूसरों को मिलाना नहीं बन सकता बने तो तब जब तुम करना चाहो' जबलों वर्तमान और भविष्य में उन्नतिशील नहीं होते तबलों आर्यावर्त्त और अन्य देशस्थ मनुष्यों की वृद्धि नहीं होती जब वृद्धि के कारण वेदादि सत्यशास्त्र का पठनपाठन ब्रह्मचयदि अाश्रम के यथावत् अनुष्ठान, सत्योपदेश होते है तभी देशोन्नति होती है। चेत रक्खो ! बहुतसी पाखण्ड की बातें तुमको सचमुच दीख पड़ती हैं जैसे कोई साधु दुकानदार पुत्रादि देने की सिद्धियां बतलाता है तब उसके पास बहुत स्त्री जाती हैं और हाथ जोड़कर पुत्र मांगती हैं और बाबाजी सब को पुत्र होने का आशीर्वाद देता है उनमें से जिस २ के पुत्र होता है वह २ समझती है कि बाबाजी के वचन से हुआ। जब उससे कोई पूछे कि सुअरी, कुत्ती, गधी और कुक्कुटी आदि के कच्चे बच्चे किस बाबाजी के वचन से होते हैं ? तब कुछ भी उत्तर न दे सकेगी | जो कोई कहे कि मैं लड़के को जीता रख सकता हू तो आप ही क्यों मर जाता है ? कितने ही धूर्त लोग ऐसी माया रचते हैं कि बड़े २ बुद्धिमान् भी धोखा खाजाते हैं जैसे धनसारी के ठग, ये लोग पांच सात मिलके दूर २ देश में जाते हैं जो शरीर से डौलहाल में अच्छा होता है उसको सिद्ध बना लेते है। जिस नगर वा ग्राम में धनाढ्य होते हैं उसके समीप जङ्गल में उस सिद्ध को बैठाते हैं उसके साधक नगर में जाके अजान बनके जिस किसी को पूछते हैं कि तुमने ऐसे महात्मा को यहा कहीं देखा वा नहीं ? वे ऐसा सुनकर पूछते हैं कि वह महात्मा कौन और कैसा है ? साधक कहता है बड़ा सिद्ध पुरुष है मन की बातें बतला देता है जो मुख से कहता है वह हो जाता है, बड़ा योगीराज है उसके दर्शन के लिये हम अपने घरद्वार छोडकर देखते फिरते है मैने किसी से सुना था कि वे महात्मा इधर की ओर आये हैं, गृहस्थ कहता है जब वह महात्मा तुमको मिलें तो हम को भी कहना दर्शन करेंगे और मन की बातें पूछेगे इसी प्रकार दिनभर नगर में फिरते और प्रत्येक को उस सिद्ध की बात कहकर रात्रि को इकट्टे सिद्ध साधक होकर खाते पीते और सो रहते हैं फिर भी प्रात:काल नगर वा ग्राम में जाके उसी प्रकार दो तीन दिन कहकर फिर चारो साधक किसी एक २ धनाढ्य स बोलते हैं कि वह महात्मा नल।