पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४३१

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द्वादशसमुल्लास. ।।। से वह स्वर्ग को जाता हो तो यजमान अपने पितादि को मार होम करके स्वर्ग के क्यों नहीं भेजता ? ।। ३ ।। जो मरे हुए जीवों का श्राद्ध और तर्पण तृप्तिकारक होता है तो प्रदेश में जानेवाले मार्ग में निर्वाहार्थ अन्न वस्त्र और धनादि को क्यों ले जाते हैं क्योंकि जैसे मृतक के नाम से अर्पण किया हुआ पदार्थ स्वर्ग में पहुंचता है तो परदेश में जानेवालों के लिये उनके सम्बन्धी भी घर में उनके नाम से अर्पण करके देशान्तर में पहुंचा देवें जो यह नहीं पहुंचता तो स्वर्ग में वह क्योंकर पहुंच सकता है ? ।। ४ ।। जो मर्त्यलोक में दान करने से स्वर्गवासी तृप्त होते हैं तो नीचे देने से घर के ऊपर स्थित पुरुष तृप्त क्यों नहीं होता ? || ५ || इसलिये जबतक जीचे तत्रतेक सुख से जीवे जो घर में पदार्थ न हो तो ऋण लेके आनन्द करे, ऋण देना नहीं पड़ेगा क्योंकि जिस शरीर में जीव ने खाया पिया है उन दोनों का पुनरागमन न होगा फिर किससे कौन मांगेगा और कौन देवेगा ? ॥ ६ ॥ जो लोग कहते हैं कि मृत्युसमय जीव निकल के परलोक को जाता है यह बात मिथ्या है क्योंकि जो ऐसा होता तो कुटुम्ब के मोह से बद्ध होकर पुन: घर में क्यों नहीं जाता १ ।। ७ ।। इसलिये यह सव ब्राह्मणों ने अपनी जीविका का उपाय किया है जो दशगात्रादि मृतकक्रिया करते हैं यह सब उनकी जीविका की लीला है ।। ८ ।। वेद के बनानेहारे भांड, धूर्त और निशाचर अर्थात् राक्षस ये तीन जफरी" * तुर्फरी इत्यादि पण्डितों के धूर्ततायुक्त वचन हैं । ९ ।। देखो धूतों की रचना घोड़े के लिङ्ग को । स्त्री ग्रहण करे उसके साथ समागम यजमान की स्त्री से कराना कन्या से टट्रा आदि लिखना धूर्ती के विना नहीं हो सकता ॥ १० ॥ और जो मांस का खाना लिखा है वह वेदभाग राक्षस का बनाया है ।। ११ ॥ (उत्तर) विना चेतन परमेश्वर के निर्माण किये जड पदार्थ स्वयं आपस में | स्वभाव से नियमपूर्वक मिलकर उत्पन्न नहीं हो सकते हैं जो स्वभाव से ही होते हों। तो द्वितीय सूर्य चन्द्र पृथिवी और नक्षत्रादि लोक आप से आप क्यों नहीं बन जाते हैं १ ॥ १ ॥ स्वर्ग सुख भोग और नरक दुःख भोग का नाम है । जो जीवात्मा न होता तो सुख दुःख का भोक्ता कौन होसके ? जैसे इस समय सुख दुः ख का भोक्ता जीव है वैसे परजन्म में भी होता है क्या सत्यभाषण और परोपकारादि क्रिया भी वणश्रमियों की निष्फल होगी ? कभी नहीं |} २ ॥ पशु मार के होम करना वेदादि सत्यशास्त्रों में कहीं नहीं लिखा और मृतकों का श्राद्ध तर्पण करना कपोलकल्पित है। क्योकि यह वेदादि सत्यशास्त्रों के विरुद्ध होने से भागवतादि पुराणमतवालों को