पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४३३

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द्वादशसमुल्लासः ।। ४२७ जो वाममार्गियों ने मिथ्या कपोलकल्पना करके वेदों के नाम से अपना प्रयोजन सिद्ध करना अर्थात् यथेष्ट मद्यपान, मांस खाने और परस्त्रीगमन करने भादि दुष्ट कामों की प्रवृत्ति होने के अर्थ वेद को कलङ्क लगाया इन्हीं बातों को देखकर चारवाक बौद्ध तथा जैन लोग वेदों की निन्दा करने लगे और पृथक् एक वेदविरुद्ध, अनीश्वरवादी अर्थात् नास्तिक मत चला लिया। जो चारवाकादि वेदों का मूलार्थ विचारते तो झूठी टीकाओं को देखकर सय वेदोक्त मत से क्यों हाथ धो बैठते ? क्या करें विचारे **विनाशकाले विपरीतबुद्धिः जब नष्ट भ्रष्ट होने का समय आता है तब मनुष्य की उलटी बुद्धि होजाती है ।। | अव जो चारवाकादिकों में भेद है सो लिखते हैं:-ये चारवाकादि बहुतसी वातों में एक हैं परन्तु चारवाक देह की उत्पत्ति के साथ जीवोत्पत्ति और उसके नाश के साथ ही जीव का भी नाश मानता है। पुनर्जन्म और परलोक को नहीं मानता एक प्रत्यक्ष प्रमाण के विना अनुमानादि प्रमाण को भी नहीं मानता। चारवाक शब्द का अर्थ “जो बोलने में प्रगल्भ और विशेषार्थ वैतण्डिक होता है। और बौद्ध । जैन प्रत्यक्षादि चारों प्रमाण, अनादि जीव, पुनर्जन्म, परलोक और मुक्ति को भी मानते हैं इतना ही चारवाक से बौद्ध और जैनियों को भेद है परन्तु नास्तिकता, वेद ईश्वर की निन्दी, परसतद्वेष, छ. यतन (आगे कहे छ, कर्म ) और जगत् का कत्त कोई नहीं इत्यादि बातों में सब एक ही हैं। यह चारवाक का मत संक्षेप से दश दिया । अब बौद्धमत के विषय में संक्षेप से लिखते हैं कार्यकारणभावाद्वा स्वभावाद्वा नियामकात् । अविनाभावनियमो दर्शनान्तरदर्शनात् ॥ कार्यकारणभाव अर्थात् कार्य के दर्शन से कारण और कारण के दर्शन से काययादि का साक्षात्कार प्रत्यक्ष से शेष में अनुमान होता है इसके विना प्राणियों के संपूर्ण व्यवहार पूर्ण नहीं हो सकते इत्यादि लक्षणे से अनुमान को अधिक मानकर चारवाक से भिन्न शाखा बौद्धों की हुई है बौद्ध चार प्रकार के हैं: एक माध्यमिक !! दूसरा • योगाचार तीसरा : सौत्रान्तिक' और चौथा वैभाषिक १६ बुद्धया निर्वर्त्तते स बौद्धः" जो बुद्धि से सिद्ध हो अर्थान् जो २ बात अपनी बुद्धि में आवे उस २ को माने और जो २ बुद्धि में न आवे उस २ को नहीं