पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४३९

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। द्वादशसमुल्लासे ।। संघ रक्तवरत्वं च शिश्रिये बौद्धभिक्षुभिः ॥ ११ ॥ बौद्धों का सुगतदेव बुद्ध भगवान् पूजनीय देव और जगत् क्षणभंगुर आय पुरुष और आय्य स्त्री तथा तत्त्वों की आख्या संज्ञादि प्रसिद्धि ये चार तत्त्व बौद्धों में मन्तव्य पदार्थ हैं ॥ १।। इस विश्व को दुःख का घर जाने तदनन्तर समुदय अर्थात् उन्नति होती है और इनकी व्याख्या क्रम से सुनो ।। २ ।। ससार में दुःख ही है। जो पञ्चस्कन्ध पूर्व कह आये हैं उनको जानना ।। ३ ।। पञ्च ज्ञानेन्द्रिय उनके शब्दादि विषय पांच और मन बुद्धि अन्त.करण धर्म का स्थान थे द्वादश हैं ॥ ४ ॥ जो मनुष्यों के हृदय में रागद्वेषादि समूह की उत्पत्ति होती है वह समुदय और जो आत्मा आत्मा के सम्बन्धी और स्वभाव है वह आख्या इन्हीं से फिर समुदय होता है। ।। ५ ।। सब संस्कार क्षणिक हैं जो यह वासना स्थिर होना वह बौद्वों का मार्ग है। और वही शून्य तत्त्व शून्यरूप होजाना मोक्ष है ।। ६ ।। बौद्ध लोग प्रत्यक्ष और अनुमान दो ही प्रमाण मानते हैं चार प्रकार के इन में भेद हैं वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक ।। ७ ।। इनम वैभाषिक ज्ञान में जो अर्थ है उसको विद्यमान मानता है क्योंकि जो ज्ञान से नहीं है उसका होना सिद्ध पुरुष नहीं मान सकता। और सौत्रान्तिक भीतर को प्रत्यक्ष पदार्थ मानता है बाहर नहीं ।। ८ ।। योगाचार आकारसहित विज्ञानयुक्त बुद्धि को मानता है और माध्यमिक केवल अपने में पदार्थों का ज्ञानसात्र मानता है पदार्थों को नहीं मानता ।। ९ । और रागादि ज्ञान के प्रवाह की वासना के नाश से उत्पन्न हुई मुक्ति चारो बौद्धो की है।। १० । मृगादि का चमड़ा, कमण्डल, भूण्ड मुड़ाये, वल्कल वस्त्र, पूर्वाह अर्थात् २ वजे से पूर्व भोजन, अकेला न रहै, रक्त वस्न का धारण यह बौद्धों के साधुओं का वेश है।। ११ ।। (उत्तर) जो बौद्धो का सुगत बुद्ध ही देव है तो उसका ,गुरु कौन था ? और जो विश्व क्षणभङ्ग हो तो चिरदृष्ट पदार्थ का यह वही है ऐसा स्मरण न होना चाहिये जो क्षणभङ्ग होता तो वह पदार्थ ही नहीं रहता पुन स्मरण किसका होव जो क्षणवाद ही बौद्धों का मार्ग है तो इनका मोक्ष भी क्षणभङ्ग होगा जो ज्ञान से युक्त अर्थ द्रव्य हो तो जड़ द्रव्य में भी ज्ञान होना चाहिये और वह चालनादि क्रिया किस पर करता है? भला जो बाहर दीखता है वह मिथ्या कैसे हो सकता है? जो आकाश में सहित बुद्धि हावे तो दृश्य होना चाहिये जो केवल ज्ञान ही हृदय में आत्मन्य होय वाहा पदार्थों को केवल ज्ञान ही मानाजाय तो ज्ञेय पदार्थ के बिना ज्ञान ही नहीं ह