पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४४३

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द्वादसमुल्लासः ।। त्याग करने योग्य है उस २ के त्याग करनेवाले को विवेकी कहते हैं ॥ १॥ ज- गत् का कर्त्ता और रागादि तथा ईश्वर ने जगत् किया है इस अविवेकी मत का त्याग और योग से लक्षित परमज्योतिस्वरूप जो जीव है उसका ग्रहण करना उत्तम है ॥ २॥ अर्थात जीव के विना दूसरा चेतन तत्त्व ईश्वर को नहीं मानते, कोई भी अनादि सिद्ध ईश्वर नहीं ऐसा बौद्ध जैन लोग मानते है। इसमें राजा शिवप्रसाद- जी 'इतिहासतिमिरनाशक" ग्रन्थ मे लिखते है कि इनके दो नाम हैं एक जैन और दुसरा चाँद, ये पर्यायवाची शब्द है परन्तु बौद्धो में वाममार्गी मद्यमांसाहारी बौद्ध हैं उनके साथ जैनियों का विरोध परन्तु जो महावीर और गौतम गणधर हैं उन- का नाम बौद्धों ने वुद्ध रक्खा है और जैनियो ने गणधर और जिनवर इसमें जिनकी परंपरा जैनमत है उन राजा शिवप्रसादजी ने अपने 'इतिहासतिमिरनाशक' ग्रन्थ के तीसरे खण्ड मे लिखा है कि "स्वामी शङ्कराचार्य" से पहिले जिनको हुए कुल हजार वर्ष के लग भग गुजरे है सारे भारतवर्ष में बौद्ध अथवा जैनधर्म फैला हुआ था इस पर नोट--"बौद्ध कहने से हमारा आशय उस मत से है जो महावीर के गणवर गौतम स्वामी के समय से शङ्कर स्वामी के समय तक वेदविरुद्ध सारे भारतवर्ष में फैला रहा और जिसका अशोक और सम्प्रति महाराज ने माना उससे जैन वाहर किसी तरह नहीं निकल सकते। जिन जिससे जैन निकला और बुद्ध जिससे बौद्ध निकला दोनों पर्यायवाची शब्द है कोश में दोनों का अर्थ एक ही लिखा है और गौतम को दोनों मानते हैं वर्ना दीपवश इत्यादि पुराने बौद्ध ग्रन्थों में शाक्य- मुनि गौतम बुद्ध को अकसर महावीर ही के नाम से लिखा है। पस उसके समय मे एक ही उनका मत रहा होगा हमने जो जैन न लिखकर गौतम के मतवालों को बौद्ध लिखा उसका प्रयोजन केवल इतना ही है कि उनको दसरे देशवालों ने बौद्ध ही के नाम से लिखा है" ॥ ऐसा ही अमरकोप में भी लिखा है:- सर्वज्ञः सुगतो बुद्धो धर्मराजस्तथागतः। समन्तभद्रो अगवान्मारजिल्लोकजिज्जिनः ॥ १॥ षडभिज्ञो दशवलोऽद्वयवादी विनायकः । मुनीन्द्रः श्रीधनः शास्ता मुनिः शाक्यमुनिस्तु यः ॥२॥ स शाक्यसिंहः सर्वार्थः सिद्धशौद्धोदनिश्च सः ।