पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४४५

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द्वादशसमुल्लासः ॥ | ॥ १।२ । ३ । और तुम तीर्थंकरों को परमेश्वर मानते हो यह कभी नहीं घट सकता क्योंकि विना माता पिता के उनका शरीर ही नहीं होता तो वे तपश्चय्याज्ञान और मुक्ति को कैसे पा सकते हैं वैसे ही संयोग का आदि अवश्य होता है क्योंकि विना वियोग के संयोग हो ही नहीं सकता इसलिये अनादि सृष्टिकर्ता परमात्मा को मानो । देखो ! चाहे कितना ही कोई सिद्ध हो तो भी शरीर आदि की रचना को पूर्णता से नहीं जान सकता, जब सिद्ध जीव सुषुप्ति दशा में जाता है तब उसको कुछ भी भान नहीं रहता, जब जीव दु.ख को प्राप्त होता है तब उसका ज्ञान भी न्यून हो जाता है, ऐसे परिच्छिन्न सामर्थ्यवाले एक देश में रहने वाले को ईश्वर मानना विना भ्रान्तिवुद्धियुक्त जैनियों से अन्य कोई भी नहीं मान सकता । जो तुम कहो कि वे तीर्थकर अपने माता पिता से हुए तो वे किन से और उनके माता पिता किन से ? फिर उनके भी साता पिता किन से उत्पन्न हुए ? इत्यादि अनबस्था आवेगी । आस्तिक और नास्तिक का संवाद । इसके आगे प्रकरणरत्नाकर के दूसरे भाग आस्तिक नास्तिक के संवाद के प्रश्नोत्तर यहां लिखते हैं जिसको बड़े २ जैनियों ने अपनी सम्मति के साथ माना और मुम्बई में छपवाया है । ( नास्तिक ) ईश्वर की इच्छा से कुछ नही होता जो कुछ होता है वह कर्म से ! ( आस्तिक ) जो सब कर्म से होता है तो कर्म किस से होता है ? जो कहो कि जीव आदि से होता है तो जिन श्रोत्रादि साधनों से जीव कर्म करता है वे किनसे हुए ? जो कहो कि अनादिकाल और स्वभाव से होते हैं तो अनादि का छूटना असम्भव होकर तुम्हारे मन में मुक्ति का अभाव होगा। जो कहो कि प्रागभाववत् अनादि सान्त हैं तो विना यत्न के सब के कर्म निवृत्त हो जायेंगे । यदि ईश्वर फलप्रदाता न हो तो पाप के फल दुःख को जीव अपनी इच्छा से कभी नहीं भोगेश जैसे चोर आदि चोरी का फल दण्ड अपनी इच्छा से नहीं भोगते किन्तु राज्यव्यवस्था से भोगते हैं वैसे ही परमेश्वर के भुगाने से जीव पाप और पुण्य के फलों को भोगते हैं अन्यथा कर्मसंकर हो जायेंगे अन्य के कर्म अन्य को भोगने पडेगे । ( नास्तिक ) ईश्वर अक्रिय है क्योंकि जो कर्म करता होता तो कर्म का फल भी भोगना पड़ता इसलिये जैसे हम केवल प्राप्त मुक को अक्रिय मानते हैं वैसे तम भी मानो । ( आस्तिक) ईश्वर अक्रिय नहीं किन्तु सक्रिय हैं जब चेतन है तो कत्त क्यों नहीं है और जो कत्त है तो वह क्रिया से पृथक् कभी नहीं हो सकता जैसा तुन कृत्रिम