पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४४६

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४४२ सत्यार्थप्रकाशः । , चंनावट के ईश्वर तीर्थंकर को जीव से बने हुए मानते हो इस प्रकार के ईश्वर को कोई भी विद्वान् नहीं मान सकता क्योंकि जो निमित्त से ईश्वर वने तो अनित्य और पराधीन होजाय क्योंकि ईश्वर बनने के प्रथम जीव या पश्चात् किसी निमित्त से ईश्वर बना तो फिर भी जीव होजायगा अपने जीवत्व स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकता क्योंकि अनन्तकाल से जीव है और अनन्तकाल तक रहेगाइसलिये इस अनादि स्वत.सिद्ध ईश्वर को मानना योग्य है । देखो ! जैसे वर्तमान समय में जीव पाप पुण्य करता, सुख दु ख भोगता है वैसे ईश्वर कभी नहीं होता। जो ईश्वर क्रियावान् न होता तो इस जगत् को कैसे बना सकता है जो कर्मों को प्रागभाववत् अनादि सान्त मानते हो तो कर्म समवाय सम्बन्ध से नहीं रहेगा जो समवाय सम्बन्ध से नहीं वह संयोगज होके अनित्य होता है, जो मुक्ति में क्रिया ही न मानते हो तो वे मुक्त जीव ज्ञानवाले होते हैं वो नहीं ? जो कहो होते हैं तो अन्त:क्रिया वाले हुए, क्या मुक्ति में पाषाणवत् जड़ हो जाते, एक ठिकाने पड़े रहते और कुछ भी चेष्टा नहीं करते तो मुक्ति क्या हुई किन्तु अन्धकार और वन्धन में पड़गये । | { नास्तिक ) ईश्वर व्यापक नहीं है जो व्यापक होता तो सव वस्तु चेतन क्यों नहीं । होती है और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि की उत्तम, मध्यम, निकृष्ट अवस्था क्यों हुई ? क्योंकि सब में ईश्वर एकसा व्याप्त हैं तो छुटाई बडाई न होनी चाहिये। (आस्तिक) व्याप्य और व्यापक एक नहीं होते किन्तु व्याप्य एकदेशी और व्यापक सर्वदेशी होता है जैसे आकाश सब में व्यापक है और भूगोल और घट पटादि सब व्याप्य एकदेशी हैं, जैसे पृथिवी आकाश एक नहीं वैसे ईश्वर और जगत् एक नहीं, जैसे सर्व घट पटादि में आकाश व्यापक है और घट पटादि प्रकाश नहीं बैसे परमेश्वर चेतन सर्व में है और सब चेतन नहीं होता, जैसे विद्वान् अविद्वान् और धर्मात्मा अधमात्मा बराबर नहीं होते विद्यादि सद्गुण और सत्यभाषणादि कर्म सुशीलतादि स्वभाव के न्यूनाधिक होने से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र और अन्त्यज बड़े छोटे माने जाते हैं वण की व्याख्या जैसी चतुर्थसमल्लास में लिख आये है वही देख लो । (नास्तिक) जो ईश्वर की रचना से सष्टि होती तो माता पितादि का क्या काम ? (आस्तिक) ऐश्वरी सष्टि का ईश्वर कन्र्ता है, जैवी सृष्टि का नहीं, जो जीवों के कर्त्तव्य कर्म है उनको ईश्वर नहीं करता किन्तु जीव ही करता है जैसे वृक्ष, फल, ओषधि, अन्नादि ईश्वर ने उत्पन्न किया है उसको लेकर मनुष्य न पीसें, न कूटें, न रोटी अदि | पदार्थ बनायें और न खावे तो क्या ईश्वर उसके बदले इन कामों को कभी करेगा ।