पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४५३

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द्वादशसमुल्लासः ॥ मान सकेगा, यह सब प्रपञ्च जैनियों ने जगत् को अनादि मानने के लिये खड़ा किया । है परन्तु यह निरा झूठ है हां ! जगत् का कारण अनादि है क्योंकि वह परमाणु आदि ६ तत्त्वस्वरूप अकर्तृक है परन्तु उनमें नियमपूर्वक बनने वा बिगड़ने का सामर्थ्य कुछ भी । नहीं क्योंकि जब एक परमाणु द्रव्य किसी का नाम है और स्वभाव से पृथक् २ रूप और जड़ हैं वे अपने आप यथायोग्य नहीं बन सकते इसलिये इनका बनानेवाला चेतन अ: वश्य हैं और वह बनानेवाला ज्ञानस्वरूप है। देखो' पृथिवी सूय्यादि सब लोकों को नि: थम में रखना अनन्त अनादि चेतन परमात्मा का काम है, जिसमें संयोग रचना • विशेप दीखता है वह स्थूल जगत् अनादि कभी नहीं हो सकता, जो कार्य जगत् को नित्य मानोगे तो उसका कारण कोई न होगा किन्तु वही कार्यकारणरूप होजायगा जो ऐसा कहोगे तो अपना कार्य और कारण अपही होने से अन्योऽन्याश्रय और । अदमाश्रय दोष आवेगा, जैसे अपने कन्धे पर आप चढ़ना और अपना पिता पुत्र आप । नही हो सकता, इसलिये जगत का कत्ती अवश्य ही मानना है । ( प्रश्न ) जो ईश्वर को जगत् का कर्ता मानते हो तो ईश्वर का कर्ता कौन है ? (उत्तर ) कुत्तों का कर्ता और कारण का कारण कोई भी नहीं हो सकता क्योंकि प्रथम कर्ता और कारण के होने से ही कार्य होता है जिसमें संयोग वियोग नहीं होता, जौ प्रथम संयोग । वियोग का कारण है उसका कर्ता वा कारण किसी प्रकार नहीं हो सकता इसकी विशेष व्याख्या आठवें समुल्लास में सष्टि की व्याख्या में लिखी है देख लेना। इन जैन लोगों को स्थूल बात का भी यथावत् ज्ञान नहीं तो परम सूक्ष्म सष्टि विद्या का बोध कैसे हो सकता है ? इसलिये जो जैनी लोग सष्टि को अनादि अनन्त मानते और द्रव्यपर्यों को भी अनादि अनन्त मानते हैं और प्रतिगुण प्रतिदेश में पर्याय और अतिवस्तु में भी अनन्त पर्याय को मानते हैं यह प्रकरणरत्नाकर के प्रथम भाग में लिखा है यह भी बात कभी नहीं घट सकती क्योंकि जिनका अन्त अर्थात् मर्यादा होती है। उनके सब सम्बन्धी अन्तवाले ही होते हैं यदि अनन्त को असंख्य कहते तो भी नहीं घट सकता किन्तु जीवापेक्षा में यह बात घट सकती है परमेश्वर के सामने नहीं क्योंकि एक २ द्रव्य में अपने २ एक २ कार्यकारण सामर्थ्य को अविभाग पर्यायों से अनन्त सामर्थ्य मानना केवल अविद्या की बात है जब एक परमाणु द्रव्य की सीमा है। तो उसमें अनन्त विभागरूप पय्यय कैसे रह सकते हैं ? ऐसे ही एक २ द्रव्य में अनन्त गुण और एक गुण प्रदेश में अविभागरूप अनन्त पर्यायों को भी अनन्त