पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४५८

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४५४ | सत्यार्थप्रकाशः ।। | अच्छी वस्तु है तथापि पक्षपात में फंसने से दया अदया और क्षमा अक्षुमा होजाती हैं इसका प्रयोजन यह है कि किसी जीव को दुःख न देना यह वात सर्वथा संभव नहीं हो सकती क्योंकि दुष्टों को दंड देना भी दया में गणनीय है, जो एक दुष्ट को दी न दिया जाय तो सहस्रों मनुष्यों को दुःख प्राप्त हो इसलिये वह दया अदया और क्षमा अक्षमा होजाय यह तो ठीक है कि सब प्राणिर्यों के दुःखनाश और सुख की प्राप्ति का उपाय करना या कहती हैं। केवल जल छान के पीना, क्षुद्र जन्तुओं को बचाना ही दया नहीं कहाती किन्तु इस प्रकार की दया जैनियों के कथनमात्र ही है क्योंकि वैसा वर्त्तते नहीं। क्या मनुष्यादि पर चाहें किसी मत में क्यों न हो दया करके उसको अन्नपानादि से सत्कार करना और दूसरे मत के विद्वानों का मान्य और सेवा करना दया नहीं है ? । जो इनकी सच्ची द्या होती तो **विवेकसार' के पृष्ठ २२१ में देखो ! क्या लिखा है **एक परमती की स्तुति अत् उनका गुण कीर्तन कभी न करना । दूसरा उनको नमस्कार' अर्थात् वंदना भी ने करनी ! तीसरा •आलापन' अर्थात् अन्य मतवालों के साथ थोड़ा बोलना । चौथा **सलपन अर्थात् उनसे बार २ न बोलना । पांचवां उनके अन्न वस्त्रादि दान अर्थात् उनका खाने पीने की वस्तु भी न देनी । छठा “गन्धपुष्पादि दान” अन्य मत की प्रतिमा पूजन के लिये गंधपुष्पादि भी न देना । ये छ: यतना अर्थात् इन छः प्रकार के कमों को जैन लोग कभी न करें। ( समीक्षक ) अब बुद्धिमानों को विचारना चाहिये कि इन जैन लेग की अन्य मतवाले मनुष्यों पर कितनी अद्या, कुदृष्टि और . द्वेष है। जब अन्य मतस्य मनुष्यों पर इतनी अद्द्या है तो फिर जैनियों को दयाहीन कहना संभव है क्योंकि अपने घरवालों ही की सेवा करना विशेष धर्म नहीं कहावा उनके मत के मनुष्य उनके घर के समान हैं इसलिये उनकी सेवा करते अन्य मतस्थों की नहीं फिर उनका दयावान् कौन बुद्धिमान् कह सकता है । विवेक० पृष्ठ १०८ में लिखा है कि मथुरा के राजा के नमूची नामक दिवान को जनमतियों ने अपना विरोधी समझ कर मारडाला और आलोयणा (प्रायश्चित्त) करक शुद्ध होगये । क्या यह भी दया और क्षमा का नाशक कर्म नहीं है ? जब अन्य मतवालों पर प्राण लेने पर्यन्त वैरवुद्धि रखते हैं तो इनको दयालु के स्थान पर हिंसक कहना ही सार्थक है । अव सम्यक्त्व दर्शनादि के लक्षण आईत प्रवचन{ ग्रह परमागमनसार में कथित है सम्यक् श्रद्धान, सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चा ।