पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७२

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सत्यार्थप्रकाशः ॥ गुसागुसाणं । कत्तोय भव्वाणभविज्जनासो न जावपत्तो नवकारमन्तो ॥ १२॥ __ जो यह मंत्र है पवित्र और परममंत्र है वह ध्यान के योग्य में परमध्येय है, तत्त्वों में परमतत्त्व है, दुःखों से पीड़ित संसारी जीवों को नवकार मंत्र ऐसा है कि जैसी समुद्र के पार उतारने की नौका होती है ।। १०॥ जो यह नवकार मंत्र है वह नौका के समान है जो इसको छोड़ देते हैं वे भवसागर में डूबते है और जो इसका ग्रहण करते हैं वे दुःखों से तर जाते हैं जीवों को दुःखों से पृथक् रखनेवाला, सब पापों का नाशक, मुक्तिकारक इस मंत्र के विना दूसरा कोई नहीं ॥ ११॥ भनेक भवान्तर में उत्पन्न हुआशरीर सम्बन्धी दु.ख भव्य जीवों को भवसागर से तारनेवाला यही है, जबतक नवकार मंत्र नहीं पाया तबतक भवसागर से जीव नहीं तर सकता यह अर्थ सूत्र में कहा है और जो अग्निप्रमुख अष्ट महाभयों में सहाय एक नवकारमंत्र को छोड़कर दूसरा कोई नहीं जैसे महारत्न वैदूर्य नामक मणि ग्रहण करने में मारे अथवा शत्रुभय में अमोघ शस्त्र के ग्रहण करने में आवे वैसे श्रुत केवली का ग्रहण करे और सब द्वादशागी का नवकार मंत्र रहस्य है इस मंत्र का अर्थ यह है । ( नमो अरिहन्ताणं ) सब तीर्थंकरों को नमस्कार ( नमो सिद्धाणं) जैनमत के सब सिद्धा को नमस्कार । ( नमो आयरियाणं ) जैनमत के सब प्राचार्यों को नमस्कार । ( नमो उवझायाणं ) जैनमत के सब उपाध्यायों को नमस्कार । ( नमो लोय सब साहूण) जितने जैनमत के साधु इस लोक में हैं उन सबको नमस्कार है । यद्यपि मन्त्र में जैन पद नहीं है तथापि जैनियों के अनेक ग्रन्थों में विना जैनमत के अन्य किसी को नमस्कार भी न करना लिखा है इसलिये यही अर्थ ठीक है । ( तत्त्वविवेक पृष्ठ १६९) जो मनुष्य लकड़ी पत्थर को देवबुद्धि कर पूजता है वह अच्छे फलों को प्राप्त होता है ।। ( समीक्षक ) जो ऐसा हो तो सब कोई दर्शन करके सुखरूप फलों को प्राप्त क्यों नहीं होते ? (रत्नसारभाग पृष्ठ १०) पार्श्वनाथ की मूर्ति के दर्शन से पाप नष्ट हो- जाते हैं कल्पभाष्य पृष्ट ५१ में लिखा है कि सवालाख मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया इ. त्यादि मूर्तिपूजाविषय में इनका बहुतसा लेख है इसी से समझा जाता है कि मूर्तिपूजा का मूलकारण जैनमत है। अब इन जैनियों के साधुओं की लीला देखिये (विवेकसार पृष्ठ २२८) एक जैनमत का साधु कोशा वेश्या से भोग करके पश्चात् त्यागी होकर स्वग. लोक को गया । (विवेकसार पृष्ठ १०) अर्णकमुनि चारित्र से चूककर कई वर्षपश्यन्त । दत्त सेठ के घर में विषयभोग करके पश्चात् देवलोक को गया श्रीकृष्ण के पुत्र