पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७३

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द्वादशसमुल्लासः । ४७१ । दंढण मुनि को स्थालिया उठा लेगया पश्चात् देवता हुआ । (विवेकसार पृष्ठ १५६) जैनमत का साधु लिंगधारी अर्थात् वेशधारीमात्र हो तो भी उसका सत्कार श्रावक लोग करें चाहें साधु शुद्ध चरित्र हों चाहें अशुद्ध चरित्र सब पूजनीय हैं। ( विवेकसार पृष्ठ १६८) जैनमत का साधु चरित्रहीन हो तो भी अन्य मत के साधुओं से श्रेष्ठ है। विवेकसार पृष्ठ १७१ ) श्रावक लोग जैनमत के साधुओं को चरित्रहित भ्रष्टाचारी देखें तो भी उनकी सेवा करनी चाहिये। (विवेकसार पृष्ठ २१६ ) एक चोर ने पांच मूठी लॉच कर चारित्र ग्रहण किया बड़ा कष्ट और पश्चात्ताप किया छठे महीने में केवल ज्ञान पाके सिद्ध होगया । ( समीक्षक) अब देखिये इनके साधु और गृहस्थों की लीला इनके मत में बहुत कुकर्म करनेवाला साधु भी सद्गति को गया और विवेकसार पृष्ठ १०६ में लिखा है कि श्रीकृष्ण तीसरे नरक में गया विवेकसार १० १४५ में लिखा है कि धन्वन्तरि नरक में गया। विवेकसार पृ० ४८ में जोगी, जगम, काजी, मुल्ला कितने ही अज्ञान से तप कष्ट करके भी कुगति को पाते हैं । रत्नसार • भा० पृष्ठ १७९ में लिखा है कि नव वासुदेव अर्थात् त्रिपृष्ठ वासुदेव, द्विपृष्ठ वासुदेव, स्वयंभू वासुदेव, पुरुषोत्तम वासुदेव, सिंहपुरुष वासुदेव, पुरुष पुण्डरीक वासुदेव, दत्तवासुदेव, लक्ष्मण वासुदेव और श्रीकृष्ण वासुदेव ये सब ग्यारहवें, बारहवें, चौदहवें, पन्द्रहवें, अठारहवें, बीसवें और बाईसवें तीर्थंकरों के समय में नरक को गये और नवे प्रतिवासुदेव अर्थात् अश्वग्रीवप्रतिवासुदेव, तारकप्रतिवासुदेव, मोदकप्रतिवासुदेव, मधुप्रतिवासुदेव, निशुम्भप्रतिवासुदेव, बलीप्रतिवासुदेव, प्रह्लादं प्रतिवासुदेव, रावणप्रतिवासुदेव और जरासंधुप्रतिवासुदेव ये भी सब नरक को गये । और कल्पभाष्य में लिखा है कि ऋषभदेव से लेके महावीर पर्यन्त २४ तीर्थंकर सब मोक्ष को प्राप्त हुए । (समीक्षक) भला कोई बुद्धिमान् पुरुष विचारे कि इनके साधु गृहस्थ और तीर्थकर जिनमें बहुत से वेश्यागामी, परस्त्रीगामी, चोर आदि सब जैनमतस्थ स्वर्ग और मुक्ति को गये और श्रीकृष्णादि महाधार्मिक महात्मा सब नरक को गये यह कितनी बड़ी बुरी ‘बात है ? प्रत्युत विचार के देखें तो अच्छे पुरुष को जैनियों का सग करना वा उनको देखना भी बुरा है क्योंकि जो इनका संग करे तो ऐसी ही झूठी २ बातें उसके भी हृदय में स्थित हो जायेंगी क्योंकि इन महाहठी दुराग्रही मनुष्यों के संग से सिवाय बुराइयों के अन्य कुछ भी पल्ले न पड़ेगा । हां जो जैनियों में उत्तमजन *हैं उन ।

  • जो उत्तमजन होगा वह इस प्रसार जैनमत में कभी न रहेगा !