पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७४

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४७२ | सत्यार्थप्रकाशः ॥ से सत्संगादि करने में भी दोष नहीं । विवेकसार पृष्ठ ५५ में लिखा है कि गङ्गादि । तीर्थ और काशी आदि क्षेत्रों के सेवने से कुछ भी परमार्थ सिद्ध नहीं होता और अपने गिरनार, पालीटाणा और आबू आदि तीर्थ क्षेत्र मुक्तिपरयन्त के देनेवाले हैं। (समीक्षक) यहां विचारना चाहिये कि जैसे शैव वैष्णवादि के तीर्थ और क्षेत्र जल स्थल जड़स्वरूप हैं वैसे जैनियों के भी हैं इनमें से एक की निन्दा और दूसरे की | स्तुति करना मूर्खता का काम है ॥ जैनों की मुक्ति का वर्णन ॥ ( रत्नसार भा० पृष्ठ २३ ) महावीर तीर्थंकर गौतमजी से कहते हैं कि ऊर्ध्वलोक में एक सिद्धशिना स्थान है स्वर्गपुरी के ऊपर पैंतालीस लाख योजन लंबी और उतनी ही पोली है तथा ८ योजन मोटी है जैसे मोती का श्वेत हार वा गोदुग्ध है उससे भी उजली है सोने के समान प्रकाशमान और स्फटिक से भी निर्मल है वह सिद्धशिळा चौदहवें लोक की शिखा पर है और उस सिद्धशिला के ऊपर शिवपुर धाम उसमें भी मुक्त पुरुष अधर रहते हैं वहां जन्ममरणादि कोई दोष नहीं और आनन्द करते रहते हैं पुनः जन्ममरण में नहीं आते सब कम से छूट जाते हैं यह जैनियों की मुक्ति है । (समीक्षक) विचारना चाहिये कि जैसे अन्य मत में वैकुण्ठ, कैलास, गोलोक, श्रीपुर आदि पुराणी, चौथे आसमान में ईसाई, सातवें आसमान में मुसलमानों के मत में मुक्ति के स्थान लिखे हैं वैसे ही जैनियों को सिद्धाशला और शिवपुर भी है। क्योंकि जिसको जैनी लोग ऊंचा मानते हैं वहीं नीचे वाले जो कि हमसे भूगोल के नीचे रहते हैं उनकी अपेक्षा में नीता है ऊंचा नीचा व्यवस्थित पदार्थ नहीं है जो आर्यावर्त्तवासी जैनी लोग ऊचा मानते हैं उसी को अमेरिकावाल नीचा मानते हैं और आर्यावर्त्तवासी जिसको नीची मानते हैं उसीको अमेरिकावाले ऊंचा मानते हैं चाहे वह शिला पेंतालीस लाख से दूनी नव्वे लाख कोश की होती तो भी वे मुक्त बन्धन में हैं क्योंकि इस शिला वा शिवपुर के बाहर निकलने से उनकी मुक्ति छूट जाती होगी । और सदा उसमें रहने की प्रीति और उससे बाहर जाने में अप्रीति भी रहती होगी जहां अटकाव प्रीति और अप्रीति है उसको मुक्ति क्योंकर कह सकते हैं? मुक्ति तो जैसी नवमें समुल्लास में वर्णन कर आये हैं वैम्री मानना ठीक है और यह जैनियों की मुक्ति भी एक प्रकार का बन्धन है ये जैनी भी मुक्ति विषय में भ्रम से फँसे हैं । यह सच है* विना वेद के यथार्थ अर्थ वोध के मुक्ति के स्वरूप को कभी नहीं जान सकते ॥ ।