पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७५

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द्वादशसमुल्लासः ।। अब और थोड़ीसी असम्भव बातें इनकी सुनो ( विवेकसार पृष्ठ ७८ ) एक करोड़ साठ लाख कलश से महावीर को जन्मसमय में स्नान कराया । ( विवेक पृष्ठ १३६ ) दशार्ण राजा महावीर के दर्शन को गया वहां कुछ अभिमान किया उसके निवारण के लिये १६, ७७, ७३, १६००० इतने इन्द्र के स्वरूप और १३, ३७, ०५, ७२, ८०, ००० ० ००० इतनी इन्द्राणी वहां आई थ देखकर राजा आश्चर्य होगया। ( समीक्षक ) अब विचारना चाहिये कि इन्द्र और इन्द्राणियों के खड़े रहने के लिये ऐसे २ कितने ही भूगोल चाहिये। श्राद्धदिनकृत्य अत्मनिन्दा भावना पृष्ठ ३१ में लिखा है कि बावड़ी, कुआ और तालाव न बनवाना चाहिये । समीक्षक ) भला जो सब मनुष्य जैनमत में हो जायें और कुआ, तालाव, बावड़ी आदि कोई भी ने बनवावें तो सब लोग जल कहां से पियें ? ( प्रश्न ) तालाव आदि बनवाने से जीव पड़ते हैं उससे बनवानेवाले को पाप लगता है इसलिये हम जैनी लोग इस काम को नहीं करते । ( उत्तर ) तुम्हारी बुद्धि नष्ट क्यों होगई है क्योंकि जैसे क्षुद्र २ जीवों के मरने से पाप गिनते हो तो बड़े २ गाय आदि पशु और मनुष्यादि प्राणियों के जल | पीने भादि से महापुण्य होगा उसको क्यों नहीं गिनते ? ( तत्त्वविवेक पृष्ठ १९६ ) इस नगरी में एक नंदमणि कार सेठ ने बावड़ी बनवाई उससे धर्मभ्रष्ट होकर सोलह महारोग हुए, मर के उसी बावड़ी में में डुका हुआ, महावीर के दर्शन से उसको जाविस्मरण होगया, महावीर कहते हैं कि मेरा आना सुनकर वह पूर्व जन्म के धर्माचार्य जान वन्दना को आने लगा, मार्ग में श्रेणिक के घोड़े की टापसे मरकर शुभध्यान के योग से ददुरांक नाम महर्द्धिक देवता हुआ अवधिज्ञान से मुझ को यहां आया जान वन्दनापूर्वक ऋद्धि दिखाके गया । ( समीक्षक) इत्यादि विद्याविरुद्ध असम्भव मिथ्या वात के कहनेवाले महावीर को सर्वोत्तम मानना महाभ्रान्ति की बात है, श्राद्धदिनकृत्य पृष्ठ ३६ में लिखा है कि मृतकवत्र साधु लेलवे ।( समीक्षक ) देखिये इनके साधु भी महाब्राह्मण के समान होगये वस्त्र तो साधु लेवें परन्तु मृतक के आभूषण कौन लेवे बहुमूल्य होने से घर में रख लेते होंगे तो आप कौन हुए। ( रत्नसार पृष्ठ १०५ ) पूंजने, कूटने, पीसने, अन्न पकाने अदि में पाप होता है।( समीक्षक ) अव देखिये इनकी विद्याहीनता भला ये कर्म न किये जायें तो मनुष्यादि प्राणी कैसे जी सकें? और जैनी लोग भी पीड़ित होकर मर जायें। (रत्नसार पृष्ट १०४) बागीचा लगाने से एक लक्ष पाप माली के लगता है । ( समीक्षक ) जो माली को लक्ष पाप लगता है तो अनेक जीव पन्न, फल, |, फूल और छाया से अनन्दित होते हैं तो करोड़ों गुणा पुण्य भी होता ही है इस पर ।