पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७८

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| Hin सत्यार्थप्रकाशः ।। अधिक होकर जीवों को विशेष पीड़ा तुम्हारे मतानुसार पहुंचती होगी। देखो ! जैसे घर वा कोठरी के सब दरवाजे बंद किये वा पड़दे डाले जाये तो उस में उता विशेष होती है खुला रखने से उतनी नहीं होती वैसे मुखपर कपड़ा बाधने से उन Sणताः अधिक होती है और 'खुला रखने से न्यून वैसे तुम अपने मतानुसार जीवों को अधिक दुःखदायक हो और जब मुख बंध किया जाता है तब नासिका के छिद्रों से वायु रुक इकट्ठा होकर वेग से निकलता हुआ। जीवों को अधिक धक्का और पीडा करता होगा देखो ! जैसे कोई मनुष्य अग्नि को मुख से फूकता और कोई नली से तो मुख का वायु फैलने से कम बल और नली का वायु इकट्ठा होने से अधिक बल से अग्नि में लगता है वैसे ही मुख पर पट्टी बांधकर वायु को रोकने से नासिकाद्वारा अतिवेग से निकल कर जीवों को अधिक दुःख देता है इससे मुखं पर पट्टी बांधनेवालों से नहीं बांधनेवाले धर्मात्मा हैं। और मुख पर पट्टी बांधने से अक्षरों का यथायोग्य स्थान प्रयत्न के साथ उच्चारण भी नहीं होता निरनुनासिक अक्षरों को सानुनासिक बोलने से तुमको दोष लगता है तथा मुख पर पट्टी बांधने से दुर्गन्ध भी अधिक बढ़ता है क्योंकि शरीर के भीतर दुर्गन्ध भरा है। शरीर से जितना वायु निकलता है वह | दुर्गन्धयुक प्रत्यक्ष हैं जो वह रोका जाय तो दुर्गन्ध भी अधिक बढ़ जाय जैसा कि | बंध जाजरूर' अधिक दुर्गन्धयुक्त और खुला हुआ न्यून दुर्गन्धयुक्त होता है वैसे | ही मुखपट्टी बांधने, दन्तधावन, मुखप्रक्षालन और स्नान न करने तथा वस्त्र न धान से तुम्हारे शरीरों से अधिक दुर्गन्ध उत्पन्न होकर संसार में बहुत से रोग करके जीवा को जितनी पीड़ा पहुंचाते हो उतना पाप तुम को अधिक होता है । जैसे मेले आदि में अधिक दुर्गन्ध होने से विशुचिक अर्थात् हैजा आदि बहुत प्रकार के रोग उत्पन्न होकर जीवों को दुःखदायक होते हैं और न्यून दुर्गन्ध होने से रोग भी न्यून होकर जीवों को बहुत दु.ख नहीं पहुंचता इससे तुम अधिक दुर्गन्ध बढ़ाने में अधिक अप राध और जो मुख पर पट्टी नहीं बाधते,इन्तधावन,मुखप्रक्षालन,स्नान करके स्थान, वा को शुद्ध रखते हैं वे तुम से बहुत अच्छे हैं जैसे अन्त्यजों की दुर्गन्ध के सहवा पृथक् रहनेवाले बहुत अच्छे हैं जैसे अन्त्यज की दुर्गन्ध के सहवास से निर्मल बुद्धि नहीं होती वैसे तुम और तुम्हारे सागयों की भी बुद्धि नहीं बढ़ती, जैसे रोग की अधिकता और बुद्धि के खल्प होने से धर्मानुष्ठान की बाधा होती है वैसे ही दुर्गन्धयुक्त तुम्हारा भार | तुम्हारे चैगियों का भी वर्तमान देता है। प्रश्न ) जैसे बन्द मकान में जलाये हुए ।