पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८

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तृतीयसमुल्लास: । अन्य न्त ६ से 3 प्राप्त व की कामना करने योग्य हैं उस परमार का जो शुद्ध चेतनस्वरूप है के rि ' को हम धारण करें । इस प्रयोजन के लिये कि वह परमेश्वर हमारे आला " बुद्धियों का अन्तर्यामिंस्टरूष हसको दुष्टाचार अधम्युक्त मार्ग से हटा के के ई बई ! चार सत्य मार्ग में चलाये, ब्स को छोड़कर दूसरे किसी वस्तु का ध्यान लोग नहीं करें । क्योंकि न कोई उसके तुल्य और न अधिक है ,वही हर ६ 2 दके पिता राजा न्यायाधीश और सत्र सुखों का देनेइरा है । Gहै त, / 7 इत उद्धव१ तिम " '? इन प्रकार ग।त्री-=न्त्र का उपदेश कर सन्ध्यापासन की जा रनानआ नई मन प्राणायाम अrदि क्रिया है सिखलायें । प्रथम स्नान इसलिये है कि जिर ' से । श'रि के बाह्य अवयवो की शुद्धि और आरोग्य आादि होते हैं । इसमे प्रमाण आदिवाणि शुध्यन्ति, मनः सत्येन शुपति । विद्यातपोभ्यां भूतात्मा, बुद्धिजनेन शुध्यक्ति ॥ रंग्य) । स० अ२ ५ । श्लोक १०४ में जल से शरीर के बाहर के अबयब, सत्याचरण से समविद्या और तप अर्थ सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म ही के अनुष्ठान करने से जीवात्मा ज्ञान अथ

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( य: । पृथिवी परमेश्वर पदार्थों से , दृढ़-निश्चय पवित्र हो से लेके पर्यन्त के विवेक बुद्धि विध ) इ1 खससे स्नान भोजन के पूर्व अवश्य करन ) । दूसरा प्राणायाम इसमे प्रमाण. योगातानुष्ठानाद्णुद्धक्षये ज्ञानदीतिराविवेकख्याते ॥ मों में नित्य योग० साधनपादे स्० २८। धर जब मनुष्य प्राणायाम करता है तब प्रतियण उत्तरोतर काल में अय्ाद्धि के रुणा- 1 लाश और ज्ञान का प्रकाश होता जाता है, जबतक मुक्ति न हो तघत उस बीमहि , आयामा का ज्ञान बराबर बढता जाता है । दह्यन्त धनायसानानां रतूनt हि यथा मला: f तान्य तपेन्द्रिया दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निहात् । समां मलु० अ० ६ । ७१ । (वाला, जैसे अग्नि में तपाने से सुवदि धातु का संल से ट होकर शुद्ध होते है। शहिद वैसे प्राणायाम करके सन आदि इन्द्रियों के दो नप क्षीण हो कर निर्मल हो जाते विथ हैं । प्राणायाम की विधि : दी जा | ऐश्वरी