पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

द्वादशसमुल्लासः ॥ डाक्टर लोग अंग को चीरते फाड़ते और काटते हैं जैसे उनको दुःख विदित नहीं होता इसी प्रकार प्रतिमूर्छित जीवों को सुख दुःख क्योंकर प्राप्त होवें क्योंकि वहां प्राप्ति होने का साधन कोई भी नहीं । ( प्रश्न ) देखो ! निलोति अर्थात् जितने हरे शाक, पात और कदमूल हैं इनको हम लोग नहीं खाते क्योंकि निलोति में बहुत और कदमूल में अनन्त जीव हैं जो हम उनको खावे तो उन जीवों को मारने और पीड़ा पहुंचने से इम लोग पाप होजावें । ( उत्तर ) यह तुम्हारी बड़ी अविद्या की बात है, क्योंकि हरित शाह खाने में जीव का मरना उनको पीड़ा पहुंचनी क्योंकर मानते हो ? भला जब तुम को पीडा प्राप्त होती प्रत्यक्ष नहीं दीखता है और जो दीखती है तो हम को भी दिखलाओ, तुम कभी न प्रत्यक्ष देख वा इस को दिखा सकोगे । जब प्रत्यक्ष नहीं तो अनुमान, उपमान और शब्द प्रमाण भी कभी नहीं घट सकता फिर जो हम ऊपर उत्तर दे आये हैं वह इस बात का भी उत्तर हैं क्योंकि जो अत्यन्त अन्धकार महासुषुप्ति और महानशा में जीव हैं इनको सुख दुःख की | प्राप्ति मानना तुम्हारे चीथैकरों की भी भूल विदित होती है जिन्होंने तुम को ऐसी युक्ति और विद्याविरुद्ध उपदेश किया है, भला जब घर का अन्त है तो उसमें २हनेवाले अनन्त क्योंकर हो सकते हैं ? जब कन्द का अन्त हम देखते हैं तो उसमें रहनेवाले जीवों का अन्त क्यों नहीं ? इससे यह तुम्हारी बात बड़ी भूल की है। ( प्रश्न ) देखो ! तुम लोग विना उरूण किये का पानी पीते हो वह बड़ा पाप करते हो, जैसे हम उष्ण पानी पीते हैं वैसे तुम लोग भी पिया करो। ( उत्तर ) यह भी तुम्हारी बात भ्रमजाल की है क्योंकि जब तुम पानी को उरुण करते हो तब पानी के जीव सब मरते होंगे और उनका शरीर भी जल में रंधर वह पानी सौंफ के अर्क के तुल्य होने से जानो तुम उनके शरीरों की तेजाव पीते हो इसमें तुम बड़े पापी हो। और जो ठंडा जल पीते हैं वे नहीं क्योकि जब ठंडा पानी पियेगे तव उदर में जाने से किंचित् उष्णता पाझर श्वास के साथ वे जीव बाहर निकल जायेंगे, जलकाय जीवों को सुख दुःख प्राप्त पूर्वोक्त रीति से नहीं हो सकता पुनः इसमें पाएँ किसी को नहीं होगा । ( प्रश्न ) जैसे जठराग्नि से वैसे उष्णता पाके जल से बाहर जीव क्यों न निकल जायेंगे ? ( उत्तर ) हां निकल तो जाते परन्तु जब तुम मुख के वायु की उष्णता से जीविका भरना मानने हो तो जल उष्ण करने से तुम्हारे मतानुसार जीव मर जावेंगे वा अधिक पीड़ा पाकर निकलेंगे और उनके शरीर उस ।