पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८२

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| सत्यार्थप्रकाशः ।। जल में रंध जायेंगे इससे तुम अधिक पापी होगे वे नहीं ? ( प्रश्न ) इम अपने । हाथ से उष्ण जल नहीं करते और न किसी गृहस्थ को उष्ण जल करने की आशा देते हैं इसलिये इम को पाप नहीं। ( उत्तर ) जो तुम उष्ण जल न लेते न पीते तो गृहस्थ उष्ण क्यों करते है इसलिये उस पाप के भागी तुम ही हो प्रत्युत अधिक पापी हो क्योंकि जो तुम किसी एक गृहस्थ को उष्ण करने को कहते तो एक ही 6िकाने उरुण होता जब वे गृहस्थ इस भ्रम में रहते हैं कि न जाने साधुजी किसके | घर को वेंगे इसलिये प्रत्यक गृहस्थ अपने २ घर में इष्ण जल कर रखते हैं इस के पाप के भागी मुख्य तुम ही हो। दूपरा अधिक काष्ठ और अग्नि के जलने जल ने से भी ऊपर रखे प्रमाणे रसोई खती और व्यापारादि में अधिक पापी और नर फगामी होते हो फिर जब तुम उष्ण जल कराने के मुख्य निमित्त और तुम उष्ण | जल के पीने और ठंडे के न पाने के उपदेश करने से तुम ही मुख्य पाप के भागी हो और जो तुम्हारा उपदेश मान कर ऐमी बातें करते हैं वे भी पापी हैं। अब देखो ! कि तुम वही अविया में होते हो वा नहीं कि छोट २ जीवों पर दया करनी और अन्य मतवालों की निन्दा, अनुपकार करना क्या थोड़ा पाप है? जो तुम्हारे तीर्थंकरों का मत सच्चा होता तो सृष्टि में इतनी वर्षा नदियों का चलना और इतना जल क्यों उत्पन्न ईश्वर ने किया ? और सूर्य को भी उत्पन्न न करता क्योंकि इन में क्रोट्टानकोड जीन तुम्हारे मतानुसार मरते ही होंगे जब वे विद्यमान थे और तुम जिनको ईश्वर मानते | हो उन्होंने दया कर सुवै का ताप और मेघ को बन्द क्यों न किया है और पूर्वोक्त | प्रकार से विना विद्यमान प्राणियों के दुख सुव की प्राप्ति कन्दमूलादि पदार्थों में रहनेवाले जीवों को नहीं होती सर्वथा सब जीवों पर दया करना भी दुःख का कारण होता है | क्योंकि जो तुम्हारे मतानुसार सत्र मनुष्य होजावे, चोर डाकुओं को कोई भी दंड न देखे | तो कितना बड़ा पाप खड़ा हो जाय ? इसलिये दुष्टों को यथावत् दंड देने और श्रेष्ठों के । पालन करने में दया और इससे विपरीत करने में दया क्षमारूप धर्म का नाश है ।। कितनेक जैनी लोग दुकान करते, उन व्यवहारों में झूठ बोलते, पराया धन मारते और दीन को छलना आदि कुकर्म करते हैं उनके निवारण में विशेष उपदेश क्यों नहीं करते है और मुखपट्टी बांधने अादि ढोंग में क्यों रहते हो ? जब तुम चेला चेली करते दे तब ईशलुन पर बहुत दिवस भूखे रहने में पराये वा अपने आत्मा को पीड़ा | ६ मोर पंः३ को प्राप्त होके दूसरों को दुःख देते और आत्महत्या अर्थात् आत्मा को । | ६- ५गले होकर हिंसक क्यों बनते हैं। ? जब हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट पर चढ़ने