पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४८६

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४८४ सत्यार्थप्रकाशः ।। दोससि दोरवि पढमे । दुगुणा लवणं मिधाय ईस में । • वारसससि वारसरवि । तत्यभि इंनि दिठ ससि रविणो । प्रकरण० भ० ४ । संग्रहणी सूत्र ७७ ॥ जो जम्बूद्वीप लाख योजन अर्थात् ४ (चार) लाख कोस का लिखा है उनमें यह : पहिला द्वीप कहता है इसमें दो चन्द्र और दो सूर्य हैं और वैसे ही लवण समुद्र में उससे दुगुणे अर्थात् ४ चन्द्रमा और ४ सूर्य हैं तथा धातकीखण्ड मेवारह चन्द्र- , मा और बारह सूर्य हैं। और इनको तिगुणा करने से छत्तीस होते हैं उनके साथ , दो जम्बूद्वीप के और चार लवण समुद्र के मिलकर व्यालीस चन्द्रमा और व्यालीस सूर्य कालादधि समुद्र में हैं इसी प्रकार अगले २ द्वीप और समुद्रों में पूर्वोक्त व्यालीस ६ को तिगुणा करें तो एक सौ छन्वीस होते हैं उनमें धातकी खण्ड के वारह, लवण स मुद्र के ४ (चार ) और जम्बूद्वीप के जो दो २ इसी रीति से निकाल कर १४४ (एक सौ चवालीस) चन्द्र और १४४ सूर्य पुष्करद्वीप में हैं यह भी आधे मनुष्य क्षेत्र की गणना ' हैं परन्तु जहांतक मनुष्य नहीं रहते हैं वहां बहुत से सूर्य और बहुतसे चन्द्र हैं और , जो पिछले अर्ध पुष्करद्वीप में बहुत चन्द्र और सूर्य हैं वे स्थिर है, पूर्वोक्त एकस च: वालीस को तिगुणा करने से ४३२ और उनमें पृर्वोक्त जम्वृद्वीप के दो चन्द्रमा, दो । सूर्य, चार २ लवण समुद्र के और बारह २ धातकीखण्ड के और व्यालीस कालोदधि के मिलान से ४९२ चन्द्र तथा ४९२ सूर्य पुष्कर समद्र में हैं ये सब बातें जिन- ' भद्रगणी क्षमाश्रमण ने बड़ी संघयण' में तथा **योतीसकरण्डक पयन्ना' मध्ये और • चन्द्रपन्नति तथा सूरपन्नति प्रमुखसिद्धान्त ग्रन्थों में इसी प्रकार कहा है।( समीक्षक ) प्रवे सुनिये ! भूगोल खगोल के जाननेवालो ! इस एक भूगोल में एक प्रकार ४९२{ चार सेवानवे) और दूसरे प्रकार असंख्य चन्द्र और सूर्य जैन लोग मानते हैं। ग्याप लोगों का बड़ा भाग्य है कि वेदमतानयायी सय्र्यसिद्धान्तादि ज्योतिष ग्रन्थों के अ- ' ध्ययन से ठीक २ भूगल खगोल विदित हुए ज। कहीं जैन के महाअन्धेर में होते तो जन्मर मर में रहते जैसे कि जैन लेग अाजकल हैं इन अविद्वानों को यह शका है। ज प में एक सय र एक चन्द्र से काम नहीं चलता क्योंकि इतनी बुइ ! iii iस ३ । चन्द्र सूर्य के सकें क्योंकि पृथिवी को जो लेाग स५ । , ३ ३ ५ ५ ३ २ ३ य च की च भूल ६ ।।