पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४९१

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द्वादशसमुल्लासः ॥ १८९ । परिधिवाले भूगोल में क्योंकर समा सकते हैं ? इससे यह बात केवल मिथ्या है ।। कुरुनइचुलसी सहसा । छच्चेवन्तनरई उपइ विजयं । दोदो महानईउ । चनुदस सहसा उपत्तेयं ॥ प्रकरणरत्ना० भा० ४ । लघुक्षेत्रसमा० सू० ६३ ॥ कुरुक्षेत्र में ८४(चौरासी) रहस्र नदी हैं। ( समीक्षक) भला कुरुक्षेत्र बहुत छोटा | देश है उसको न देखकर एक मिथ्या बात लिखने में इनको लज्जा भी न आई ॥ यामुत्तरा उताउ । इगेग सिंहासणाउ अइपुब्बं । चउ सु वितास निसिण, दिसिभवजिण मजणं होई ॥ प्रकरणरत्नाकर भा० ४ लघुक्षेत्रसमा० स० ११९ ॥ उस शिला के विशेष दक्षिण और उत्तर दिशा में एक २ सिंहासन जानना चाहिये उन शिला के नाम दक्षिण दिशा में अतिपाण्डु कम्बला, उत्तर दिशा में अतिरिक्त कम्बली शिला है उन सिंहासन पर तीर्थकर बैठते हैं । ( समीक्षक ) देखिये । इनके तीर्थंकरों के जन्मोत्सवादि करने की शिला को ऐसी ही मुक्ति की सिद्धशिला हैं ऐसी इनकी बहुत सी बातें गोलमाल हैं कहांतक लिखें, किन्तु जल छान के पीना और सूक्ष्म जीवों पर नाममात्र दया करना, रात्रि को भोजन न करना ये तीन बातें अच्छी हैं बाकी जितना इनको कथन है सय असम्भवग्रस्त हैं इतने ही लेख से बुद्धिमान् लोग बहुतसा जान लेंगे थोड़ासा यह दृष्टान्तमात्र लिखा है जो इनकी असम्भव बातें सब लिखें तो इतने पुस्तक होजायें कि एक पुरुष आयु भर में पद भी न सके इसलिये जैसे एक हंडे में चुड़ते चावलों में से एक चावल की परीक्षा करने से कचे वा पके हैं सब चावल विदित होजाते हैं ऐसे ही इस थोड़े से लेख से सलन लोग बहुतसी बातें समझ लेंगे, बुद्धिमान के सामने बहुत लिखना आवश्यक नहीं क्योंकि दिग्दर्शनवत् सम्पूर्ण आशय को बुद्धिमान लोग जान ही लेते हैं। इसके आगे ईसाइयों के मत के विषय में लिखा जायगा ।। । इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिनिर्मिते सत्यार्थप्रकाशे सुभाषाविभूषिते नास्तिकमतान्तर्गतचारवाकवौद्धजैनमतखण्डनमण्डनविषये द्वादशः समुल्लासः सम्पूर्णः ॥ १२ ॥